दलित शब्द से इतनी नफरत क्यों, योगी जी ने क्या गलत कह दिया
मुझे ये समझ नहीं आता कि वोट के लिए दलितों को कंधे पर उठाकर चल रहे लोगों के दिलों से नफरत क्यों नहीं निकल पा रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नाथ ने हनुमान जी को दलित क्या बताया हंगामा खड़ा हो गया है। मैं पूछना चाहता हूं ऐसी घटिया मानसिकता रखने वालों से कि हनुमान जी दलित क्यों नहीं हो सकतें, पहले तो कान खोलकर सुने योगी आदित्यनाथ के हनुमान जी को लेकर दिये बयान का विरोध करने वाले लोग। की योगी ने हनुमान जी का अपमान नहीं प्रशंसा की है उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि हनुमान जी दलित आदिवासी सहित सभी को साथ लेकर चलते थे। और राम जी के सम्पर्क में आने के बाद उनकी सेवा में लगे रहे इसमें योगी जी ने क्या गलत कह दिया। पहले तो दलित शब्द का ज्ञान न रखने वाले कान खोलकर सुने कि दलित केवल जाटव ही नहीं होता, दलित, ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रीय और शूद्र सभी में हो सकता है। सेवा भावना रखने वाले इंसान को दलित कहा जाता है या अधिकार से वंचित रखें गये इन्सान को भी दलित कहा जाता है। जिसका शोषण हुआ उसको दलित कहा जा सकता है। सेवभाव रखना तो दलित की इंसानियत रहती है मैं तो बधाई देना चाहूंगा उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ को जिन्होंने चुनावी सभा में ही सही हनुमान जी को लेकर अपना भाषण दिया और दलित विरोधी कांग्रेसियों ने योगी के बयान का विरोध शुरू करके अपनी घटिया मानसिकता व दलितों के प्रति सोच का ख़ुद ही प्रदर्शन कर डाला।मै पूछना चाहता हूं उन लोगों से जो यह कहते नहीं थक रहे हैं कि भाजपाइयों ने भगवान या हनुमान को भी जातियों में बाट दिया। अरे भाई जब आप लोग भगवान राम को क्षत्रिय और कृष्ण को यादव बताते नहीं थकते तो हनुमान जी को दलित कहने में हंगामा क्यों कर रहे हैं।यदि जाट पंडित या ठाकुर बताया होता तो क्या फिर भी विरोध करते। क्या सिर्फ इसलिए कि आप लोगों की नजरों में दलित अछूत होता है। मुझे तो शर्म आती है कांग्रेसी शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जैसे साधु पर जो कह रहे हैं हनुमान जी ब्राह्मण थे इतना ही नहीं उन्होंने उदाहरण देकर कहा है कि कांधे मूंज जनेऊ साजे का मतलब साफ है कि हनुमानजी ब्रहामण थे। जबकि इन्हें कहना था कि हनुमानजी सिर्फ भगवान थे उनकी कोई जाति नहीं थी या वो सभी जातियों से ताल्लुक रखते थे। मैं पूछना चाहता हूं स्वरूपानंद सरस्वती या दलित शब्द का विरोध करने वालों से कि भगवान महादेव किस जाति के थे या विष्णु भगवान किस जाति के थे। मैं दावे के साथ कहता हूं कि इनकी कोई जाति नहीं थी क्योंकि उस समय जातियां नहीं होती थी। जातियां तो घटिया लोगों की देन है जिन्होंने अपनी सुविधानुसार जातियों का नामकरण किया। मैं पूछना चाहता हूं दलित विरोधी मानसिकता रखने वालों से कि जब मायावती मुख्यमंत्री बनी तो कितने ऐसे धर्मावलंबी है जिन्होंने उनसे मुलाकात करने का प्रयास न किया हो या कितनों ने यह कहकर उनका विरोध किया हों कि मुख्यमंत्री दलित वर्ग से आती है इसलिए हम इनसे किसी काम को नहीं कहेंगे या इनकी सरकार में मंत्री विधायक सांसद नही बनेंगे। अथवा कोई एक यह बताएं कि उन्हें महामहिम राष्ट्रपति बुलाएं और वह यह कहें कि राष्ट्रपति दलित वर्ग से आते हैं इसलिए हम उनसे नहीं मिलेंगे। आज हनुमान जी को दलित समर्थक क्या बताया कि तूफान आ गया। कितना अच्छा होता कि योगी जी के बयान का समर्थन करके कहते कि हां बजरंगबली दलित समर्थक थे बानर भालू सभी को साथ रखतें थे। मैं कहना चाहता हूं देश के सभी दलित आदिवासी व पिछड़ों से कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को बधाई संदेश भेजें और कहें कि आपने राजस्थान में जो बयान देकर हमारा मान सम्मान बढ़ाया है हम उसका अहसान जीवनभर मानेंगे। कयोकि जब जब हनुमान जी की पूजा होंगी दलित प्रेम बढ़ेगा और दलितों से नफरत में कमी आयेगी। दलितों के साथ साथ पिछड़ों से भी जातिवाद के कारण नफरत करने वालों का ब्रेन वाश होगा। मैं शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज सहित तमाम साधु-संतों से कहना चाहता हूं कि आप लोग भले ही सनातनधर्म के रक्षक बनते हों परंतु सनातन के सबसे बड़े दुश्मन आप लोग ही है यदि आप लोगों ने छुआ छूत से किनारा कर लिया होता तो बड़ी संख्या में बौद्धिक बनता जा रहा दलित पिछड़ा सनातन धर्म नहीं छोड़ता । मैं धर्म के ठेकेदारों से चलते चलते यह भी कहना चाहता हूं कि यदि आप लोगों ने अपना नेचर नहीं बदला तो वह दिन दूर नहीं जब सनातन में शामिल सत्तर प्रतिशत दलित पिछड़ा बौद्ध धर्म पर तेजी से काम कर रहे वरिष्ठ जनों के कहने में आकर सनातन से किनारा कर लेगा।और शिवरात्रि को हरिद्वार या अन्य तीर्थ स्थलों से कांवर लाकर सनातनी परंपरा को मजबूत रखने वालों की संख्या घटकर दस प्रतिशत भी नहीं रहेगी इसलिए सनातनी परंपरा को मजबूत करने का ढोंग कर रहे साधु-संतों को चाहिए कि अब पुराने जमाने के भारत से बाहर निकल कर इक्कीसवीं सदी के भारत या हिंदूत्व को मजबूत करने की शपथ लें। क्योंकि आज दलित पिछड़ों में शंकराचार्यों या साधु-संतों से ज्यादा योग्यता रखने वालों की कमी नहीं है आवश्यकता केवल धर्म के ठेकेदारों को निष्पक्षता से देखने की हैं वरना वह दिन दूर नहीं जब कन्वर्टेड मुस्लिमों की तरह दलित पिछड़े इस्लाम में तो नहीं बौद्ध धर्म में चलें जायेंगे और सनातनी ठेकेदारों के पास पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा।
विनेश ठाकुर संपादक
विधान केसरी लखनऊ