बहुजन समाज पार्टी की मुखिया कुमारी मायावती भले ही नगर निकाय में अपने प्रत्याशी लड़ाकर चुनावी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब हो गयी हो लेकिन उन्होनें चुनाव प्रचार न करके साफ कर दिया कि मेरा मकसद पार्टी को नही पार्टी के फन्ड को मजबूत करना था। जिसमें मुझे उम्मीद से कम ही सही सफलता तो मिल गयी हांलाकि मेयर जैसी बड़ी सीटों में कई महानगर ऐसे रहे जहां बसपा को प्रत्याशी तैयार करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। जानकार दावा करते है कि वर्तमान चुनाव में कुछ प्रत्याशी भले ही खुद की मेहनत या साख पर जीत का दावा कर रहे हो लेकिन बसपा के चुनावी प्लान को देख तो कोई प्रत्याशी अपनी जीत दर्ज कराता नही दिखाई दे रहा है, मजेदार बात तो यह है कि 2019 की बुनियाद कहलाने वाले नगर निकाय चुनाव में बसपा मुखिया मायावती का भाग न लेना सबको चौकाने वाला है क्योंकि जिस चुनाव में दो तिहाई बहुमत की साख रखने वाला मुख्यमंत्री अपनी पूरी कैबिनेट के साथ चुनाव प्रचार कर रहा हो ऐसे में लोकसभा से जीरों व विधानसभा में लम्बी लम्बी सांस ले रही बसपा का चुनाव के प्रति आक्रामक न होना ये समझने को काफी है कि या तो बसपा की मालिक किसी डर के साये में राजनीति कर रही है या उन्होने बसपा को बर्बाद करने का बीड़ा उठा लिया है वरना वे अपनी पार्टी जिन्दा करने में चुनावी मेहनत करने के बजाय शांत न बैठती, शायद बसपा मुखिया कुमारी मायावती को यह मालूम नही कि जिसे वे बर्बाद करने में लगी है उससे देश के करोड़ों लोगों की आस्था है, वे बसपा की राष्टÑीय अध्यक्ष जरूर है लेकिन इसको खड़ा करने वाले काशीराम जी ने अपने लाखों समर्थकों के खून पसीने की कमाई से उन लोगों के लिए खड़ा किया था जिन्हे एक सोची समझी साजिश के तहत आधे से ज्यादा वोट होने के बावजूद सत्ता से अलग रखा गया था, मायावती जी आप मानों न मानों लेकिन बसपा के खत्म होने से करोड़ों लोगों के साथ धोखा हो रहा है, जिसका जिम्मेदार अकेली आप हैं क्योंकि आपने कमजोर वर्गों के लिए गठित बसपा को कभी लोकतात्रिंक तरीके से चलाने का प्रयास नही किया, आपने कभी किसी से बसपा के हित में सुझाव नही मांगे और टिकट वितरण में केवल पार्टी फन्ड को महत्व दिया, आपने चार बार उत्तर प्रदेश सरकार चलाने के बावजूद टिकटों में पैसा लेना नही छोड़ा जिस कारण अवसरवादी लोग बसपा से टिकट पाकर मंत्री विधायक बनते गये और और आपने धीरे-धीरे निष्ठावानों को खुद से अलग-थलग कर दिया तथा चापलूसी की जमात आपके चारों तरफ मंडराने लगी। आप मानों ना मानों लेकिन कोई भी दावे के साथ कह सकता है कि बसपा की बबार्दी का कारण केवल पैसा लेना रहा और चौंकाने वाली बात तो ये है कि 2012 हो या 2014 अथवा 2017 में बड़ा झटका लगने के बाद लोगों को उम्मीद थी कि बसपा मुखिया अब पैसे वालों को तरजीह न देकर निष्ठावानों को आगे बढ़ाकर चुनाव लड़ाने का काम करेगी लेकिन वर्तमान निकाय चुनाव में किस तरह वार्ड मेम्बरों तक से पैसा लिया गया चेयरमैन के टिकटों की बोली लगाई गयी, इस कदम ने लोगों की बची कुची उम्मीद पर पानी फेर दिया जो बसपा के आखिरी पड़ाव की ओर इशारा करता है, हांलाकि बसपा मुखिया दबंग जातियों को आरक्षण देने की वकालत करके पहले ही बसपा की लोकप्रियता पर बट्टा लगाती रही है, चाहे जाटों को आरक्षण देने की पैरवी हो या मुस्लिमों को कट्टरपंथी बताना, चाहे ब्राहम्ण वाद में फंसना हो या दबंगों को टिकट देकर विधायक सांसद बनाना, बसपा के लिए नुकसान का सौदा साबित हुआ लेकिन पूरी तरह लोकसभा से बाहर हो चुकी बसपा मुखिया के व्यवहार में परिवर्तन न आना, मुलाकात का समय न दिया जाना, टिकट में पैसा लेना बादस्तूर जारी है और यदि बसपा मुखिया कुमारी मायावती आगे की राजनिती में दबंग जातियों के आरक्षण का खुले मंच से विरोध करके टिकटों में पैसा लेना बंद कर देती है तथा पुराने लोगों को अपने नजदीक कर लेती हैं तो स्व. काशीराम द्वारा स्थापित बसपा को बचाया जा सकता है, वरना अब हर तीसरे व्यक्Þित ने बसपा को बर्बाद बताना शुरू कर दिया है, बसपा से जुडेÞ एक व्यक्ति का कहना है कि सवाल मायावती या काशीराम जी का नही है, सवाल गरीबों, दलितों, पिछड़ों के लिए बने एक राजनितीक दल के अस्तित्व को बचाने का है, क्योंकि जब तक बसपा जिन्दा है तब तक ही प्रमुख दल दलित पिछड़ों को महत्व दे रहे हैं उन्हें पता है कि यदि ये इक्ट्ठा होकर बसपा के साथ खडेÞ हो गये तो हमें 2007 या 2012 की तरह चुनाव लड़ने का प्रत्याशी नही मिलेगा और ये भी सोलह आने सच है कि बसपा के खत्म होने के बाद भविष्य में कोई ऐसा दल अस्तित्व में नही आ पायेगा। इसलिए मायावती को अपना मत स्पष्ट करना चाहिए कि वे किसी के डर से बसपा को खत्म करना चाहती है या शासन, सत्ता, न्यायपालिका सहित समस्त क्षेत्रों में समाज के गरीब वर्गो को जनसंख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व दिलाने को इसे जिन्दा रखना चाहती है।
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