ना संभले तो दास्तां न रहेगी दस्तानों में
बहुजन समाज पार्टी में घुसकर सांसद विधायक का सपना पूरा करने के बाद बहुजन समाज पार्टी को अलविदा करने वालों की कड़ी में कल और एक पांडे जी का नाम जुड़ गया जिन्होंने भले ही लोकसभा में एक नहीं कई बार बसपा की विचारधाराओं का जोर शोर से प्रयास किया लेकिन कल उन्होंने बता दिया कि बहुजन समाज पार्टी की विचारधारा के साथ उनका कभी कोई वास्ता नहीं रहा वह तो केवल सांसद विधायक बनने बसपा में आए थे जिस कारण कल वे अपने विधायक बेटे के साथ बसपा के हाथी से उतारकर साइकिल पर सवार हो गए, जो भले ही उनके हित में अच्छा कदम हो लेकिन बसपा के लिए भी कामयाबी से कम नहीं है सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि आप दलित व ओबीसी नेताओं को किनारे न करके ब्राह्मणों के साथ न चली होती तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आज स्वर्गीय काशराम द्वारा बनाई गई यह पार्टी बर्बाद ना होने पाती।
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि अकेले सांसद रितेश पांडे व उनके बेटे राकेश पांडे ही नहीं इससे पहले भी कई पांडे जी बहुजन समाज पार्टी से सांसद विधायक की पदवी लेकर बसपा को अलविदा कह चुके हैं लेकिन बहुजन समाज पार्टी की नेता कुमारी मायावती पांडे जी के सहारे उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने का सपना देख रही हैं पांडे जी से पहले चाहे उनके नजदीकी रहे बृजेश पाठक हो या रामवीर उपाध्याय सुबोध पराशर हो या अन्य कई ब्राह्मण नेता बसपा छोड़ भागे जो शायद दोनों के लिए सही हों क्योंकि दोनों की विचारधारा एक दूसरे के विपरित रही है जितना मैं जानता हूं उसे प्रस्तुत किया जाए तो यदि कांशीराम जी अथवा मायावती ने बसपा गठन के समय ब्राह्मणों को बसपा में आने का निमंत्रण दिया होता तो दलित बड़े पैमाने पर बसपा के साथ न खड़ा हो पाता। क्योंकि कांशीराम जी ने बसपा का गठन गरीबों वंचितों एवं सामाजिक तथा जातिगत रुप से पिछड़े और अपमान झेलने वाली जातियों को जमात के रूप में बदलने को किया था ताकि ऐसे लोग राजनीतिक लाभ के साथ साथ सामाजिक और जातिगत सम्मान भी पा सकें। लेकिन ऐसा हो नहीं सका यानी कुमारी मायावती का नेतृत्व मिलते ही बहुजन समाज पार्टी ब्राह्मण समाज पार्टी के नाम से मशहूर हो गई इसे इत्तेफाक कहा जाए या मजबूरी ये तो दलित जाने या ओबीसी फिलहाल यह कहना गलत नहीं होगा कि कुछ लोग बसपा का टिकट खरीदकर विधायक सांसद बनते गए और कुछ निष्ठावान बसपा छोड़ते गए तो किसी को निकाल दिया गया । उधर जो बसपा की विचारधारा के विपरित धन बल के आधार पर शाम दाम दण्ड भेद अपनाकर सांसद विधायक बने वो भी चलते बने।
आज जानकार लोग दावा करते हैं कि यदि एक दो को छोड़ दें तो बहन जी के पास निष्ठावान नेताओं की भारी कमी है वह भी बाबा साहेब को याद करते हुए उनका पाठ पढ़ते रहते हैं। कुल मिलाकर शेष बचे बसपा के निष्ठावान कार्यकर्ताओं के सामने प्रतिदिन यह चुनौती रहती है कि जब स्वामी प्रसाद मौर्य ,दद्दू प्रसाद, वीर सिंह एडवोकेट राम अचल राजभर आर एस कुशवाहा बाबूसिंह कुशवाहा आर के चैधरी रामचंद्र प्रधान सरीखे नेताओं को निकाल दिया गया तो हमें कब किनारे कर दिया जाए कुछ नहीं कहा जा सकता।खैर मैं तो बधाई देना चाहता हूं सांसद रितेश पांडे व उनके विधायक बेटे राकेश पांडे, ब्रजेश पाठक, सुबोध परासर को जिन्होंने अपने स्वार्थ में ही सही बसपा को अलविदा करके बसपा मुखिया को बता दिया कि विचार धारा के विपरित कितने भी लोग आते रहे निष्ठावान कार्यकर्ताओं को कोई सानी नहीं है।
विनेश ठाकुर, सम्पादक
विधान केसरी,लखनऊ