अलीगढ़: एएमयू शिक्षक प्रोफेसर एमजे वारसी द्वारा ‘भाषाई और सांस्कृतिक विविधता‘ पर व्याख्यान

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अलीगढ। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के भाषाविज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर एम जे वारसी ने स्थायी समाजों के निर्माण में सांस्कृतिक और भाषाई विविधता की भूमिका और भाषाई विविधता के मूल्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कैसे भारतीय बहुभाषावाद की व्यापकता और लोकप्रियता में वृद्वि हो रही है। उन्होंने कहा कि भारत में भाषाई विविधता का परिमाण इस तथ्य से निर्धारित किया जा सकता है कि भारत की जनगणना (2011) के अनुसार भारत में 1599 अन्य भाषाओं के साथ 121 प्रमुख भाषाएं थीं।वह यूजीसी मानव संसाधन विकास केंद्र (एचआरडीसी), राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर द्वारा ‘भाषाई विविधता की ओर’ विषय पर आयोजित रिफ्रेशर कोर्स में ‘भाषाई और सांस्कृतिक विविधताः कुछ प्रतिबिंब’ विषय पर मुख्य भाषण प्रस्तुत कर रहे थे।प्रोफेसर वारसी ने कहा कि भारत में प्रमुख रूप से फैले इंडो-यूरोपियन, द्रविड़ियन, ऑस्ट्रो-एशियाटिक और तिब्बती-बर्मन भाषा परिवारों में सुविधाओं के संचरण का एक लंबा इतिहास है और इन साझा विशेषताओं के आधार पर ही अमेरिकी मानवविज्ञानी मरे बार्नसन एमेनेउ ने 1956 में ‘इंडिया ऐज ए लिंग्विस्टक ऐरिया’ के शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया था।उन्होंने जोर दिया कि इस तथ्य के बावजूद कि प्रत्येक भारतीय राज्य ने कामकाज और शासन करने के लिए एक या दो आधिकारिक भाषाओं को अपनाया है, कई अन्य भाषाएं भी अलग-अलग जनसंख्या समूहों द्वारा बोली जाती हैं, जिससे भारत में भाषाई विविधता को एक अविश्वसनीय स्तर प्राप्त होता है।प्रोफेसर वारसी ने उप-राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय भाषाई विविधता पर प्रकाश डालते हुए संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के एक चिंताजनक अध्ययन का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि भारत में 196 भाषाओं के ‘लुप्तप्राय’ होने के कारण भारत यूनेस्को की उन देशों की सूची में सबसे ऊपर है जहां सबसे अधिक बोलियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। इनमें से दो संभावित विलुप्त भाषाओं (मणिपुरी और बोडो) को यूनेस्को 2010 अनुसूची के तहत ‘संकटग्रस्त’ और ‘असुरक्षित’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।प्रोफेसर वारसी ने संस्कृतियों, जीवन शैली, रीति-रिवाजों और धार्मिक समरस्ता के विकास के लिए नई भाषाएं सीखने पर जोर दिया।उन्होंने कहा कि भाषा एक अनमोल उपहार है, जो अद्वितीय और विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करती है। यह वह माध्यम है जिसके द्वारा संस्कृति, परंपराओं और साझा मूल्यों को संप्रेषित और संरक्षित किया जाता है।