बांदाः बाढ़ ने बढ़ाया संक्रामक रोगों का खतरा , नदियां छोड़ गईं मलबा
विधान केसरी समाचार
बांदा। सीमावर्ती मध्य प्रदेश की घाटियों में बारिश कम होने के बाद नदी किनारे बसे गांवों में भरा पानी कम हो रहा है। जलस्तर कम होने से लोगों को बाढ़ के कहर से राहत की सांस मिली हैप् है, लेकिन मुसीबतों का ये नया सैलाब उनके लिए कई परेशानियां लेकर आया है। बाढ़ गांवों में मलबा छोड़ गई है, जो संक्रामक रोगों का खतरा है। स्वास्थ्य टीमें 7103 लोगों की जांच दवाइयां इत्यादि दे चुकी हैं। इसके अलावा क्लोरीन की टैबलेट व ओआरएस के पैकेट बांट रहे हैं।
नदियों के उफनाने से बड़ोखर, जसपुरा, तिंदवारी, कमासिन व बबेरू ब्लाक के गांवों में पानी भर गया था। नदियों का जलस्तर कम होने से गांवों का पानी उतर गया है, लेकिन सैलाब का मलबा अभी गांवों में भरा है। ऊपर से तेज धूप हो रही है। दलदल में मच्छर भी पनपने लगे हैं। ऐसे में संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा तेजी से बढ़ गया है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. एके श्रीवास्तव ने बताया कि जल भराव की वजह से मरीज नहीं आ पा रहे थे। इसके लिए 43 बाढ़ चैकियां बनाकर उन्हें स्वास्थ्य सेवा का लाभ दिया जा रहा है। 7103 लोगों की स्वास्थ्य जांच की जा चुकी है।
महामारी विशेषज्ञ डा. प्रसून खरे ने बताया कि बाढ़ कम होने के बाद संक्रामक बीमारियों के खतरे को देखते हुए गांवों में क्लोरीन की टैबलेट बांटी जा रही है। ग्रामीण अपने घरों की सफाई में इस क्लोरीन का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह संक्रमण बीमारियों को रोकने में काफी मददगार साबित होता है। अभी तक 16,660 टैबलेट का वितरण किया जा चुका है। इसके अलावा 10,842 ओआरएस के पैकेट भी दिए गए हैं।
भूसे में फंगस लगने का खतरा
बाढ़ग्रस्त गांवों में जलभराव के चलते हरे चारे की फसल खराब हो गई है। चरागाह भी तबाह हो गए हैं। ऐसे में पशु भूसे के सहारे हो गए हैं। बाढ़ग्रस्त गांवों में पशुओं को भूसा देने में सावधानी बरतने की जरूरत है। जलभराव से भूसे में फंगस लग जाता है। पशुओं को किसी हाल में फंगसयुक्त भूसा नहीं देना है। नहीं तो पशुओं की सेहत खराब हो जाएगी।