हैदरगढ़: रामलीला में हुआ राम केवट संवाद व चित्रकूट की लीला का मंचन

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हैदरगढ/बाराबंकी।  नगर के रामलीला कोठी में आठवें दिन की रामलीला मे राम केवट संवाद ,चित्रकूट एवं जयंत उद्धार की लीला दिखाई गयी। जिसे देखने के लिए विशाल जनसमूह उमड़ा।  प्रभु श्री रामचंद्र जी वन जाते समय श्रंगवेरपुर पहुंचते व अपने शखा निषादराज से मिलकर हाल चाल पूछते है।  अपने वन जाने का कारण बताते है। उसके उपरांत सभी के साथ गंगा तट पर पहुंच कर गंगा पार जाने के लिए केवट को बुलाते है केवट नाव पर बैठाने से मना कर देता है और कहता है जब तक आप अपने चरण नही धुलावाएंगे तब तक आपको हम नौका मे नही बैठाएंगे केवट के भाव पूर्ण शब्दों को सुन भगवान मुस्कुरा कर  कहते है की अच्छा भाई केवट तुम वही करो जिससे तुम्हारी नौका बच जाये केवट भगवान के चरण धोकर उसका अमृत पान करता है श्री राम माता सीता लखन लाल सहित गंगा पार उतरता है माता सीता अपनी अंगूठी उतर कर श्री राम जी को देती है।  श्री राम जी केवट को देने लगते है कहते है लो भाई उतरई लेलो केवट कहता है अरे भगवान मै आपसे उतरई कैसे ले सकता हूं, हम तो गंगा पार उतरने वाले है आप तो भव से पार लगने वाले है तो काम तो दोनो का एक ही है नाई से ना नाई ले धोबी से ना धोबी ले के मजदूरी प्रभु जात को ना बिगड़िये उसके बाद आगे जाने दिया। प्रभु श्री राम भरद्वाज आश्रम पहुंचते है ।

भरद्वाज मुनि  से मिलकर आगे जाते समय बाल्मीकि जी से मिलते है और निवास के लिए स्थान पूछते है बाल्मीकि जी रुकने के लिए बहुत ही सुंदर स्थान चित्रकूट बताते है। भगवान वहां पहुंच कर अपना निवास बनाते है उधर भरत शत्रुधन अपनी माताओ एवं पूरी सेना के साथ वहां पहुंचते है भरत जी के  बहुत मनाने के बाद भी प्रभु श्रीराम वापस जाने से इंकार कर देते हैं  और अपनी चरण पादुका दे कर वापिस कर देते हैं।  कुछ दिन बाद ब्रम्हा का पुत्र जयंत कौआ बनकर भगवान की परीक्षा लेने  के लिए सीता जी के पैर मे अपनी चोच मार देता है । जिस पर श्री राम जी उस पर बाण छोड़ देते है, जिससे वो जलने लगता हैं।  भागते भागते वो सभी देवताओं के पास जाता है कोई भी उसकी सहयाता नही करता है । जिसके बाद  नारद मुनि की सलाह पर वह भाग कर  प्रभु श्री राम जी के चरण पर गिरकर क्षमा मांगता है। जिसके बाद प्रभु श्री राम एक आंख का छेदन करते हुए उसे क्षमादान दे देते हैं। जिसके बाद जयंत वहां से चला जाता है।