बलियाः भाव के भूखे हैं भगवान – जगतगुरु रामानुजाचार्य
विधान केसरी समाचार
बलिया। नगर के सटे निधरिया ग्रामसभा के नई बस्ती स्थित काली मंदिर शिवशक्ति नगर के प्रांगण में चल रहे नौ दिवसीय श्री शतचंडी महायज्ञ के सातवें दिन व्यासपीठ से महान मानस मर्मज्ञ जगतगुरु रामानुजाचार्य राजगोपालाचार्य ने श्रद्धालुओं के बीच ज्ञान अमृत वर्षा की।
उन्होंने कथावाचन करते हुए भक्त और भगवान के बीच के संबंधों पर प्रकाश डाला। कहा कि भगवान तो सिर्फ भाव के भूखे होते हैं। बस भक्त उन्हें मन से पुकारे तो वे कहीं भी पधारेंगे। व्यासपीठ से श्रद्धालुओं पर ज्ञान की वर्षा करते हुए जगतगुरु रामनुजाचार्य राजगोपालाचार्य ने कहा कि बलिया महान दानवीर राजा बलि की धरती है।
उन्हीं के नाम पर इसे बलियाग के रूप में जाना जाता था। बाद इसे अपभ्रंस नाम बलिया के रूप में जाना गया। इस महान धरती पर राजा बलि ने यज्ञ किया था। भगवान को बामन रुप लेकर आना पड़ा। उन्होंने राजा बलि से तीन डेग दान में मांगा था। राजा बलि को यह मालूम हो गया था कि उनकी परीक्षा लेने भगवान विष्णु खुद धराधाम पर पधार चुके हैं।
उन्होंने बामन भगवान को खूब समझाया कि आप की शादी करवा देते हैं। ये ले लीजिए वो ले लीजिए, लेकिन बामन भगवान तो बस इस बात पर अडिग थे कि हमे तीन डेग भूमि ही चाहिए। जिसपर राजा बलि मान गए। लेकिन परीक्षा लेने तो भगवान बामन के रूप में आये थे। दो डेग में ही आकाश पाताल नाप दिया। इसके बाद बामन भगवान ने बोला कि अब एक डेग कहां रखूं तो राजा बलि ने अपना हाथ बढ़ा दिया। इस परीक्षा के बामन भगवान भी इसी भूमि पर रहने लगे। बाद में मां लक्ष्मी को खुद इस धरती पर आना पड़ा था। जगतगुरु ने कहा कि इस कलयुग में भगवान के नाम का कीर्तन किया जाए तो भगवान मिल जाते हैं एक बार नारद ने भगवान से पूछा कि आप कहां निज निवास करते हैं।
उन्होंने कहा कि उन्हें जहां भी भगवान को आदर मिलता है वह वही विराजते हैं। नारद ने पूछा कि पूरे जग में कहां-कहां संतुष्टि मिली है। एक तो शबरी के यहां दूसरा विदुरजी के यहां। भगवान भाव पर हर जगह नाचते हैं, भगवान चाहते हैं कि भक्त जब कीर्तन करें भक्त उन्हें भाव से भोग लगाए तो भगवान दिल से उसके पास चले जाते हैं। उन्होंने कहा कि संत भगवान और भक्त के बीच कड़ी का काम करते हैं उनसे भगवान का साक्षात्कार कराते हैं। संत महात्मा ही पंच संस्कार से परिपूर्ण करते हैं। उन्होंने कहा कि नामांकरण भी किसी संत के द्वारा ही करवाया जाए तो अच्छा होता है। क्योंकि नामांकरण के समय भगवान से मिलता नाम का नामांकरण हो तो वह श्रेष्ठ है। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है कि किसी भी तरह से भगवान का नाम लेते रहना चाहिये। किसी अच्छे या खराब काम में भी राम का नाम लेते हैं। कहा कि अगर कोई घर में मर भी जाता है तो महिलाएं राम-राम कहकर रोती हैं। ऐसे में राम का नाम हर जगह विराजमान है।