सब है मौन, सनातन का दोषी कौन ?

 

दिल्ली में दो दिन पहले बड़ी संख्या के लोगों ने बौद्ध धर्म स्वीकार करने का फैसला कर देवी देवताओं का अपमान किया है जिस कारण सनातन प्रेमियों में भूचाल आ गया है और मैं भी गुस्सा हूं, मुझे दुख है कि जिस धार्मिक जातिगत भेदभाव के कारण बड़े पैमाने पर आरक्षित वर्ग के लोग सनातन से किनारा कर बुद्धिस्ट विचारधारा अपना रहे हैं वह सनातन के लिए बुरी खबर है। मैं पूछना चाहता हूं दिल्ली मामले पर शोर मचाने वालों से की भैया क्या आपको पता नहीं कि देश में जातिगत भेदभाव आजादी के 70 साल बाद उसी तरह खड़ा है। कौन नहीं जानता कि जिस जातीय व्यवस्था को ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय और शूद्र में बताया गया है उसे अब त्यागने की आवश्यकता है, ऐसी स्थिति में चौथे वर्ण के लोग खुद को आज भी असुरक्षित महसूस करते हैं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि सनातन के असली दुश्मन वह लोग हैं जो जातिगत छूआछूत जैसा भेदभाव करके सनातन के बड़े आरक्षित वर्ग को सनातन छोड़ने को मजबूर कर रहे हैं। मैं पूछना चाहता हूं सनातन के धर्मावलंबियों से की देश की आजादी को सत्तर साल बीतने के बाद जातिगत छूआछूत भेदभाव व्यवस्था समाप्त हो जानी चाहिए थी लेकिन नीति और नियत साफ न होने के कारण नहीं हो सकी, आज देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार चल रही है जिसके प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोरख पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ जी हैं क्या भारत अथवा उत्तर प्रदेश की सरकार को नहीं पता कि आरक्षित वर्ग के लोगों में आरक्षण समाप्त करने होने का डर पैदा हो गया है, जिसमें काफी हद तक सच्चाई भी है। देश में तेजी से हो रहे निजी करण को भी आरक्षण समाप्त करने की नियत माना जा रहा है, वही देश के सभी विश्वविद्यालयों में भी निकलने वाली रिक्तियों को विभागवार निकालने का कारण आरक्षण समाप्ति माना जा चुका है देश की सर्वोच्च अदालत हो या राज्य में बड़ी अदालत सभी के जजों की नियुक्ति में कॉलेजियम सिस्टम समाप्त करने की मांग लंबे समय से आ रही है। लेकिन सरकारी मुखिया इस ओर ध्यान देने को तैयार नहीं है। जिसे आरक्षित वर्ग के लोग अपने अधिकारों पर कुठाराघात मानने लगे है। जानकार लोग बताते हैं कि जब सिविल सर्विस की नियुक्ति के लिए आयोग का गठन किया जा सकता है तो फिर बड़ी अदालतों में नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम कब तक चलता रहेगा। खुद पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद कोलेजियम सिस्टम पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं, रही सही कसर सिविल सर्विस में लेटरल एंट्री ने पूरी कर डाली इसे भी आरक्षित वर्ग के लोग अपने अधिकारों पर कुठाराघात मानने लगे हैं, सभी को पता है कि वर्तमान सरकार से जो उम्मीद थी वह उस पर खरा न उतरकर आरक्षण व्यवस्था को समाप्त करने पर तुली है, ऐसी स्थिति में लोगों की नाराजगी हिंदूवादी पार्टी होने के कारण भाजपा से ज्यादा बढ़ गई है और लोग अपने अधिकारों पर कुठाराघात होते देख बुद्धिस्ट विचारधारा की तरफ भागने लगे हैं। मैं पूछना चाहता हूं धर्म के ठेकेदारों से कि आज तक देश की 4 पीठों में से एक में भी कोई दलित या ओबीसी वर्ग का शंकराचार्य क्यों नहीं बन सका। मैं स्वयं सेवक संघ के पदाधिकारियों से भी पूछना चाहता हूं कि संघ बनने के बाद आज तक इसका अध्यक्ष कोई दलित क्यों नहीं बन सका, मैं भी सनातन का कोई मामूली शुभचिंतक नहीं हूं जिस कारण मुझे इस बात का दुख है कि आज छुआछूत और जातिगत भेदभाव के कारण तेजी से बुद्धिस्ट विचारधारा की तरफ भाग रहे सनातन के एक बड़े वर्ग में अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति डर पैदा होने लगा है। वह चाहते हैं कि हमारी जाति की संख्या सबसे ज्यादा है तो उसी तरह से हमारे आरक्षण को बचा कर रखा जाए, और यदि आरक्षण समाप्त करने की योजना है भी तो उससे पहले बेसिक शिक्षा को सीबीएसई की तरह उच्च कोटि की बनाई जाएं और निशुल्क रखा जाए। आप सभी को यह भी पता है कि देश को आजाद हुए 70 साल से ज्यादा बीत जाने के बावजूद गांव गरीब के बच्चे प्राथमिक विद्यालयों में पढ़कर पूंजीपति लोगों के बच्चों की बराबरी नहीं कर सकते। और वैसे भी आर्थिक अभाव के कारण देश के 70% से ज्यादा बच्चे सरकारी स्कूलों में शिक्षा पाने को मजबूर हैं ऐसी स्थिति में यदि आरक्षण समाप्त कर दिया जाएगा तो आरक्षित वर्ग के लोगों में अधिकार छीन जाने का डर पैदा होना स्वभाविक है। मैं सोशल मीडिया पर भी प्रतिदिन पढ़ता रहता हूं कि आरक्षित वर्ग के लोग किसी सामान्य वर्ग के व्यक्ति का हक मारकर आरक्षण के सहारे उनकी सीटों पर कब्जा कर रहे हैं। क्या मेरे मित्र यह भी बताने का काम करेंगे की आरक्षित वर्ग के अधिकतर बच्चे किन स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करते हैं और पूंजीपतियों के बच्चे किन स्कूलों में शिक्षा पाते हैं। ऐसी स्थिति में यदि गांव देहात में पढ़ने वाले बच्चे आरक्षण से वंचित कर दिए जाएंगे तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि शायद ही उनका नंबर किसी बड़ी नौकरियों में आ पाएगा। इसलिए सनातन का प्रेमी होने के नाते मैं कहना चाहता हूं कि यदि वास्तव में धर्म के ठेकेदार सनातन को मजबूत रखना चाह रहे हैं तो उन्हें चाहिए कि वे शासन सत्ता व सरकारी नौकरियों , मठ मंदिरों में बराबर की हिस्सेदारी देने का काम करें। और यदि धार्मिक आधार पर आरक्षित वर्ग के लोगों में कहीं योग्यता की कमी दिखाई देती है तो उन्हें योग्य बनाने का काम करें, मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि कोई साथी सनातन से दूर नहीं भागेगा। इसलिए धर्म के नंबरदारो की जिम्मेदारी बन जाती है कि वह सनातन को मजबूत बनाए रखने के लिए जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी के आधार पर प्रत्येक को सामाजिक व राजनीतिक तथा शासन सत्ता धार्मिक स्थल, व्यापार, जमीन जायदाद में हिस्सेदारी देने का काम करें। यह कदम सनातन से दूर होते जा रहे लोगो में विश्वास हासिल करने का काम करेगा और बुद्धिस्ट विचारधारा अपनाने को प्रेरित कर रहे लोगो के मुंह करारा तमाचा होगा। सरकार की तरफ से यदि मुख्यमंत्री राज्यपाल और मंत्री पदों पर आरक्षण व्यवस्था को अपनाकर नियुक्ति करके जातिगत धार्मिक भेदभाव व छुआछूत करने वालों के लिए मजबूत कानूनी सज़ा का प्रावधान हो जाएं तो काफी हद तक इस परिवर्तन को रोका जा सकता है।

वरना संघ प्रमुख की तरह भेदभाव को पुरखों द्वारा अपनाई गई निति बताकर त्यागने का बयान देना होगा।

विनेश ठाकुर, सम्पादक
विधान केसरी ,लखनऊ