आसान नहीं है मुलायम होना ?
आज भले ही ढेर सारे मंत्री विधायक सांसद खुद को नेता मानने में संकोच न करते हो, लेकिन नेताजी की मृत्यु के बाद मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि नेता भले ही कितने पैदा हो जाए लेकिन मुलायम होना किसी के बस की बात नहीं है। आज जब उनकी मौत की खबर देश को लगी तो न सिर्फ भारत के लोग बल्कि विदेशों से भी दुख जताने वालों की कमी नहीं रही, देश में शायद ही किसी राजनीतिक दल का नेता अथवा कार्यकर्ता ऐसा रहा हो जिसने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर नेताजी को श्रद्धांजलि न दी हो, जो यह बताने को काफी है की जो आया है उसे जाना ही है लेकिन श्री मुलायम सिंह का जाना देश के लोगों को अच्छा नहीं लगा। लगता भी कैसे वह भले ही कई बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व देश के रक्षा मंत्री रहे हो और प्रधानमंत्री बनते बनते उनके अपनों ने ही उन्हें टंगड़ी मारने में कोई कसर नहीं छोड़ी हो लेकिन देश में कोई जाति बिरादरी धर्म या संप्रदाय अथवा व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसके लिए सपा संस्थापक ने योगदान न दिया हो। तभी तो उनकी मृत्यु पर देश की राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री, ग्रह मंत्री हो या रक्षा मंत्री सहित केंद्रीय मंत्रिमंडल के अधिकांश लोगों और विपक्षी दल के सभी नेताओं यहां तक कि देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों गवर्नरों सभी पत्रकारों समाज सेवियों ने श्रद्धांजलि अर्पित न कि हों।
जानकार बताते हैं कि नेताजी जिसके समर्थन में रहें फिर नुकसान की तरफ नहीं देखा तभी तो उनको लेकर स्थानीय नेताओं ने जिसका जलवा कायम है उसका नाम मुलायम है जैसे नारे लगाए। उन्होंने अपने साथियों को किनारे कर भाई रामगोपाल यादव को राज्यसभा भिजवाया तों अयोध्या जा रहें कार सेवकों पर गोलियां चलवा दी और जब मौका मिला तो भाजपा के समर्थक भी बन बैठे, जिस कारण उन्हें दंगल के पहलवान के साथ साथ सियासत का खिलाड़ी भी माना गया। लेकिन हर किसी का साथ देने वाले मुलायम सिंह मात्र बयासी साल की उम्र में सबको छोड़कर चले गए।और रही तो केवल यादें जिन्हें शायद जीतें जी कोई भुला नहीं पाएगा।
विधान केसरी परिवार भी नेता जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता है तथा आशा करता है कि उनके परिवार से कोई न कोई अवश्य उनकी कुछ कमी पूरा करने का काम करेगा।
विनेश ठाकुर ,सम्पादक
विधान केसरी ,लखनऊ