वाराणसी: ग्रस्ताग्रस्त सूर्य ग्रहण के कारण भोर में 4.42 बजे से सूतक, घाटों पर जप-तप, ग्रहण का मोक्ष भार में दृश्यमान नहीं

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वाराणसी। तिथियों के फेर से इस बार कार्तिक अमावस्या दो दिन पड़ रही है। अमावस्या में पहले दिन 24 अक्टूबर को सनातन धर्मावलंबियों ने दीप ज्योति का मुख्य पर्व दीपावली मनाई तो दूसरे दिन 25 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण लगा। दीपावली के दूसरे दिन लगने वाला खंडग्रास सूर्यग्रहण ग्रस्तास्त सूर्यग्रहण के रूप में नजर आया। सूर्यास्त होने के कारण ग्रहण का मोक्ष भार में दृश्यमान नहीं था। ग्रहण का सूतक 12 घंटे पहले ही लग गया।

तुला राशि, स्वाति नक्षत्र पर लगने वाले खंड सूर्य ग्रहण का स्पर्श शाम 4.22 बजे हुआ। मध्य 5.14 बजे तो मोक्ष 6.32 बजे हुआ। हालांकि ग्रहण काल में ही 5.37 बजे सूर्यास्त हुआ। इसे ‘ग्रस्ताग्रस्त’ ग्रहण कहते हैं। धर्मशास्त्रीय विधान के अनुसार, इस स्थिति में ग्रहण से निवृत्ति अगले दिन 26 अक्टूबर को सूर्योदय काल में सुबह 6.02 बजे मानी जाएगी। धर्मशास्त्रीय विधान अनुसार, सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले यानी भोर में 4.42 बजे सूतक लग गया। इसमें देव स्पर्श, पूजन, भोग-आरती वर्जित है। इस अवधि में जप-तप आदि का फल कोटि गुना अधिक माना जाता है।

ज्योतिषाचार्य पंडित लोकनाथ शास्त्री के मुताबिक, सूतक काल में भोजन तथा पेय पदार्थों के सेवन की मनाही की गई है तथा देव दर्शन भी वर्जित माना गया है। हालांकि, इसके पीछे वैज्ञानिक मान्यता भी है कि ग्रहण के समय जीवाणुओं की प्रबलता होती है और ऐसे काल में किया भोजन स्वास्थ्य के लिहाज से उत्तम नहीं होता है। ग्रहण काल के दौरान भोजन के पात्रों में कुश अथवा तुलसी डाल देनी चाहिए जिससे ग्रहण काल के सब कीटाणु कुश में एकत्रित हो जाएं और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियां डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते हैं।

पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया जाता है। बताया कि जीव विज्ञान विषय के प्रोफेसर टारिंस्टन ने भी अनुसंधान से सिद्ध किया है कि सूर्य व चंद्र ग्रहण के समय मनुष्य के पेट की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। इसके कारण इस समय किया गया भोजन अपच, अजीर्ण आदि शिकायतें पैदा कर शारीरिक या मानसिक हानि पहुंचा सकता है।