समाज धार्मिक बदलाव की ओर?
वर्तमान परिदृश्य में हिंदूवादी संगठन भले ही धर्म के स्वयं भू रक्षक बनकर समाज को एकजुट करने का दावा कर रहे हों लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हूं लम्बे समय से हिंदूत्व की रक्षा करता आ रहा ओबीसी वर्ग तेजी से बदलाव की ओर बढ़ने लगा है तथा धर्म रक्षा की ठेकेदारी करने वाले संगठन इस ओर ध्यान देने को तैयार नहीं है।
जहां तक मेरे मन की तार्किक बात है तो मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि पहले तो जातिगत व धार्मिक भेदभाव छूआछूत जातपात इस सामाजिक बदलाव का मुख्य कारक बना , रही सही कसर वर्तमान सरकार की आरक्षण विरोधी निति ने पूरी कर डाली, हालांकि मैं इस बात से इंकार नहीं करता कि आरक्षण का विरोध सरकार की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है या अनजाने में उठाया गया आत्मघाती कदम है लेकिन यह सोलह आने सच है कि वर्तमान में सरकार चला रही भाजपा की छवि आरक्षण विरोधी बनकर उभरी है। जिस कारण हमेशा हिंदूत्व की रक्षा करने वाले बड़े वर्ग ने धार्मिक बदलाव की ओर रूख कर लिया है मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि यदि यही हाल रहा तो वह समय दूर नहीं जब हिंदूत्व के ठेकेदारों को पछताना पड़ेगा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
दरअसल सरकार इससे अनजान हैं या जानकार यह तो सरकार जाने या भाजपा लेकिन इस सच्चाई से इन्कार नहीं किया जा सकता कि छूआछूत जातपात भेदभाव आज भी जारी है जिस कारण हिंदूत्व को लेकर पढ़ें लिखे छात्र छात्राओं ने धार्मिक आडम्बर पर तर्क देना और मांगना शुरू कर दिया है। आरक्षित वर्ग के युवा पढ़ लिखकर धर्म को आडम्बर मानकर जीवन की कला मानने को तो तैयार नहीं हैं अधिकांश धर्म की आड़ में प्रस्तुत किए साक्ष्यों की तह तक जाकर मानना चाहते हैं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि हिंदूत्व के नाम पर बनी सरकारों ने आरक्षण व्यवस्था पर हमला न कर शासन सत्ता में पर्याप्त भागेदारी दी होती तो पढ़ लिखकर आए युवाओं का हिंदूत्व से मोहभंग नहीं हुआ होता। हिंदू धर्म के नंबरदारो को चाहिए कि वे आरक्षित वर्ग को इतना प्यार दे कि उन्हें दिल्ली में राजेन्द्र पाल गौतम की तरह या लखनऊ का बौद्ध धर्म स्वीकार करो कार्यक्रम न करना पड़े। मुझे कट्टर सनातनी होने के नाते इस बात का अफसोस है कि हम खुद को सबसे बड़ा हिंदू साबित करने के चक्कर में खुद ही हिंदूत्व को कमजोर करने में लगे हैं। मैं पूछना चाहता हूं अपने जैसे हिंदू धर्म के ठेकेदारों से कि हम समाज में नफ़रत फैला कर अपने देश को कहां लेजाकर छोड़ेंगे ,आज भले ही हिंदूत्व का सबसे बड़ा संगठन खुद को सत्ता से अलग बताते न थकता हों लेकिन देश के लोग जानकार हो जाने के कारण भलीभांति समझते हैं कि दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं और संघ के बिना सरकार में पत्ता तक नहीं हिलता। इसका उपाय केवल इतना भर है कि सरकार आरक्षित वर्ग को हाजिर नाजिर मानकर सत्ता का संचालन करें, मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था से त्रस्त होकर धार्मिक बदलाव की ओर तेजी से दौड़ रहा यूवा यही रूक जाएगा जिससे संघ व सरकार दोनों को मिलने वाली मजबूती हिंदूत्व के लिए वरदान साबित होगी, जिसके लिए सरकार व संघ के कर्ताधर्ताओं को सीने पर पत्थर रखकर आगे का रास्ता तैय करना पड़ेगा। मुझे यहां यह कहने में भी संकोच नहीं है व्यवस्था से नाराज़ चल रहे लोग यदि शोशल मीडिया या अन्य कहीं कुछ लिखा पढ़ी कर देते हैं तो कुछ धर्म ठेकेदार उन्हें समझाने की जगह गालियां बकना शुरू कर देते हैं जिससे हिंदूत्व को और ज्यादा कमजोरी मिलती है यदि वास्तव में ऐसे लोग हिंदूत्व के रक्षक है तो उन्हें चाहिए कि वे उनके साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार कर शासन सत्ता में पर्याप्त हिस्सेदारी देने का काम करें। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि हिंदूत्ववादी व्यवस्था से नाराज़ हो रहें ऐसे लोगों की नाराजगी पलभर में दूर हो जाएगी, बाकी ठेकेदार लोग जैसा उचित समझें।
विनेश ठाकुर ,सम्पादक
विधान केसरी ,लखनऊ