न निति न नियत, सपा बसपा की फजीहत

उत्तर प्रदेश में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी पर भले ही सपा बसपा के नेता आरोप प्रत्यारोप लगाकर अपने वोटो को रोकने का भरसक प्रयास कर रहे हो, लेकिन मैं दावे के साथ का सकता हूं की इन दोनों दलों में नीति व नियत का अभाव होने के कारण लगातार फजीहत होती जा रही है और सपा बसपा के मुखिया केवल सत्ता को कटघरे में खड़े करने तक सिमटते जा रहें हैं।

पहले इन दलों ने बाईस की हार फिर आजमगढ़ लोकसभा सीट गंवाने के बाद भाजपा सरकार पर चुनाव में घोटाले का आरोप लगाया और अब लखीमपुर की गोला सीट पर हुई करारी हार पर भी अपने गिरेबान में न झांक उत्तर प्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा करना नहीं भूले। मैं पूछना चाहता हूं सपा बसपा के इन बड़बोले नेताओं से कि भईया पहले आप लोग मतदाताओं को बेवकूफ न समझ कर अपनी सियासी पालिसी का तो खुलासा करो कि आप लोग जनता का हित चाहते हैं या विकास के नाम पर सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं। यदि सभी को साथ लेकर चलना आपकी कार्यशैली बन चुकी है तो वर्तमान में सरकार चला रही भाजपा से अच्छा कौन है कम से कम अपने वारिस के लिए तो पार्टी नही चलती, इसमें कोई दोराय नहीं है कि इस समय जहां लोग महंगाई से जंग लड़ रहे हैं वही लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट प्रगति पर है, इसके बावजूद आप लोगों की कोई ठोस पालिसी न होना दुश्मन देश से बिना हथियार जंग में कूदने के समान है इसके इतर आप लोग किसी के सगे नहीं हो। दोनों का लक्ष्य केवल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से ज्यादा नहीं है उसमें भी नम्बर आना कभी ना पूरा होने वाले सपने के समान है।

मुझे याद है उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य द्वारा कहा गया वह शब्द जिसमें उन्होंने दावा किया था कि विधान सभा चुनाव समाप्त होने पर समाजवादी पार्टी समाप्तवादी पार्टी बनकर उभरेगी वहीं हुआ और सपा बसपा दोनों को करारी हार का सामना करना पड़ा। अखिलेश यादव और बसपा मुखिया में सिर्फ इतना फर्क रहा कि बसपा मुखिया चुनाव बाद मुख्यमंत्री बनने की सोचती रही और अखिलेश यादव चुनाव परिणाम आने से पहले ही मुख्यमंत्री बन बैठे। यदि उन्होंने खुद को मुख्यमंत्री न समझा होता तो शायद उनकी शपथ हो जाती।  रही सही कसर उनकी पार्टी के छुटभैय्ए नेताओं ने अधिकारियों की लिस्ट बनाकर पूरी कर दी आज की तारीख में इन दोनों दलों को उम्मीद है कि जनता आने वाले दिनों में स्वयं इनके साथ आकर खड़ी हो जाऐगी तभी तो इन दलों में भले ही जांच से बचें रहने की योजना पर काम होता हो लेकिन सरकार बनाने का काम केवल ट्वीटर फेसबुक व प्रेस कॉन्फ्रेंस तक सिमट कर रह जाता है। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि अखिलेश यादव के पिता जहां धरती पुत्र व गरीबों मसीहा की पदवी पाकर मरते समय भी देश को अपनी लोकप्रियता का अहसास करा गए, अखिलेश यादव शायद ही उनके पदचिन्हों पर चल पाएंगे।

बात मायावती की करें तो ये भी भले ही सियासी दांव चलकर कांशीराम द्वारा बनाई गई बसपा की सर्वे सर्वा बन गई हो लेकिन उनके द्वारा स्थापित मिशन पर वह कभी नहीं चल सकी मुझे तो लगता है उन्हें कांशीराम जी द्वारा तैयार किए गए इस बसपा रूपी मकान के ध्वस्त होने की भी चिंता नहीं है वैसे भी जो घर बनाता है उसकी देखभाल कर मजबूत रखना भी उसी की जिम्मेदारी रहती है। बसपा मुखिया ने तो चार चार बार सरकार चलाकर खुद को इतना उलझा लिया कि वह चाहकर भी कांशीराम जी के मिशन पर नहीं चल पा रही है। मजेदार बात तो यह कि अखिलेश यादव की तरह बहनजी भी भाजपा की सरकार होने के बावजूद दिन रात काम करने वाली भाजपा पर आरोप लगाकर अपनी झेप मिटाना नहीं भूलती। कुल मिलाकर मुझे यह दावा करने में कोई संकोच नहीं है कि वर्तमान में सपा बसपा के पास जनता के हित की कोई ठोस निति व नियत नहीं है जिस कारण इनका प्रत्येक चुनाव में फजीता हो रहा है और यह दोनों दल सच्चाई मानने को तैयार नहीं है। ध्यान रहे अखिलेश जी और मायावती जी आज की तारीख में शोसल मीडिया के साथ कुछ ठोस नियत व निति बनाने की आवश्यकता है। जिसपर आप दोनों काम करते नहीं दिखाई पड़ते।

विनेश ठाकुर ,सम्पादक
विधान केसरी, लखनऊ