चुनाव आया तो एससी-ओबीसी हो गए राहुल व नीतीश, अखिलेश भी बने शूद्र

 

चुनाव आने की सुगबुगाहट हो या सरकार जाने की चर्चा राजनेता किस तरह रंग बदलते हैं इसकी बानगी देखनी है तो राहुल गांधी, अखिलेश यादव सहित नीतीश कुमार से मिलना पड़ेगा जो चुनाव से पहले भले ही अति पिछड़ी जातियों के घोर विरोधी रहे हों लेकिन चुनाव का समय नजदीक आते ही राहुल गांधी ने जहां एससी-ओबीसी के आरक्षण का ढिंढोरा पीटना शुरू कर दिया है वहीं नीतीश कुमार भी जाति का फर्जी आंकड़ा तैयार कराकर जातिगत जनसंख्या के आधार पर प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने लगे हैं। मैं पूछना चाहता हूं सबसे लम्बे समय तक देश की सरकार चलाने वाली कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से कि जब सत्ता ने तुमसे लम्बी दूरी बना ली तो आखिर किस आधार पर आपको आरक्षण की याद सताने लगी। किस मुंह से आपने 90 सेकेट्री में दो ओबीसी सेकेट्री की गिनती करा ली। अच्छा लगता यदि आप अपनी सरकार का रिकार्ड हाथ में लेकर सेकेट्री, ज्वाइंट सेक्रेटरी का आंकड़ा प्रस्तुत करके कहते कि हां हमने कभी आरक्षित वर्ग के लोगों से विश्वासघात नहीं किया। मैं दावे से कह सकता हूं कि आपकी सरकार ने चलते-चलते आरक्षित वर्ग में ऐसी जातियां शामिल करा दी जो न सिर्फ संविधान के अनुसार आरक्षण की अपात्र थी बल्कि वास्तविकता में भी धन, धरती, शिक्षा व सम्मान से परिपूर्ण थी और आज जब आपको सत्ता में वापसी की उम्मीद खत्म हो गई तो न सिर्फ जातिगत जनगणना कराने की याद आने लगी बल्कि एससी ओबीसी आरक्षण को भी आपने चुनाव जीतने का हथियार बना लिया।

कान खोलकर सुनें राहुल गांधी जी यदि आपने इन पिछड़ी-अतिपिछड़ी, एससी-एसटी जातियों को चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल न कर इनकी वास्तविक स्थिति को समझा होता तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आज न तो कांग्रेस की दुर्गति हो रही होती और न ही आरक्षित वर्ग बरबादी के कगार पर खड़ा दिखाई देता। और हाँ आज भी आप भले ही आरक्षित वर्ग के लोगों से कितना ही प्रेम का ढोंग कर ले लेकिन वास्तविकता की बात करें तो यह आपका केवल सत्ता हासिल करने का शिगुफा मात्र है जो शायद देश की जनता अच्छी तरह समझ चुकी है। यदि आपके अंदर जरा भी नैतिकता बची है तो आप यह बताने का कष्ट करें कि कांग्रेस पार्टी ने आजादी के बाद से अब तक लंबे समय सरकार चलाने के बावजूद पिछड़ी एससी-एसटी ओबीसी एमबीसी की जनसंख्या को आधार मानकर कितने लोगों को लोकसभा व विधानसभा में भेजने काम किया। यदि वाकई आप इन जातियों के हितैषी है तो आज ही अपनी पार्टी से जनसंख्या अनुपात स्वयं मानकर लोकसभा चुनाव में टिकट वितरण की घोषणा करें और अपने गठबंधन साथियों से भी इस ओर ध्यान देने का सुझाव दें। लेकिन आपको तो केवल प्रधानमंत्री की कुर्सी दिखाई दे रही है जो शायद कभी आपको मिलने वाली नहीं है। रही बात नीतीश कुमार की तो आज भले ही लंबे समय से सरकार चला रहे नीतीश कुमार जनगणना के सहारे केंद्र की सरकार तक पहुंचाना चाहते हों लेकिन आरक्षित वर्ग यह अच्छी तरह से जानता है कि जिस तरह के आंकड़े यादव और कुर्मी के प्रस्तुत किए गए हैं वह वास्तव में सच्चे नहीं है और न ही पिछड़ो व अति पिछड़ों की जनसंख्या वास्तविक रूप में दिखाई गई है।

यदि मान भी लें तो श्रीमान जी जरा यह भी बता दें की चार-चार बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद आपको अपने बिहार में यही पता नहीं चला कि यहां पर एससी-एसटी, ओबीसी व एमबीसी के लोग बड़े पैमाने पर निवास करते हैं तो हम क्यों नहीं उसी अनुपात में इनको लोकसभा व विधानसभा में भेजकर मंत्री बनाने का काम करें। लेकिन आपको भी चुनावी खेल जो खेलना है। मान्यवर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि चाहे बिहार की जनता हो या उत्तर प्रदेश की राजस्थान की हो या मध्य प्रदेश की अब किसी बहकावे में आने वाली नहीं है। पढ़े लिखे लोग अच्छी तरह समझ चुके हैं कि हमारा दुश्मन अथवा दोस्त कौन है। अति पिछड़ों के सहारे अपनी सरकारी दुकान चलाने वाले नीतीश जी आप भी कान खोलकर सुन लें कि अब केंद्र में तो छोड़िए बिहार प्रदेश में भी आपकी यह काठ की हांडी चढ़ने वाली नहीं है। रही बात अखिलेश यादव की तो उनके बारे में कुछ भी कहना उचित नहीं होगा। जब उन्होंने देखा कि अब सरकार से कोसों दूर हो गए और लोकसभा चुनाव में भी कोई भरोसा करने को तैयार नहीं है तो ऐसी स्थिति में श्री अखिलेश यादव भी यादवों से शुद्र हो गए, जबकि शुद्र की श्रेणी में आने वाले लोगों का कहना है कि यदि वाकई अखिलेश यादव शूद्रों की श्रेणी में आते हैं तो इन आरक्षित वर्ग के लोगों के प्रति उनके मन में खास लगाव होता जो आज दूर-दूर तक देखने को नहीं मिलता। हां श्री यादव भले ही अति पिछड़ों के सहारे सत्ता तक पहुंचना चाहते हैं लेकिन पूरा उत्तर प्रदेश जानता है कि अखिलेश यादव मुसलमानों का ध्रुवीकरण कर केवल यादव नेताओं तक ही सीमित होकर रह गए हैं। ऐसी स्थिति में यह आरक्षित वर्ग के लोग आप पर कैसे भरोसा करें मेरी समझ से बाहर है।

विनेश ठाकुर कर्पूरी समर्थक एवं सम्पादक
      विधान केसरीलखनऊ