शक्ति बिना भक्ति कैसी
देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में सादगी सज्जनता ईमानदारी की प्रतिमूर्ति और बिहार के दो दो बार मुख्यमंत्री रहे जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर ऐतिहासिक काम किया है जिसको लेकर कर्पूरी जी की जाति के लोगों में खुशी का ठिकाना नहीं है लेकिन अफसोस की बात है कि बिना भेदभाव जातिगत राजनीति से उठकर समस्त ओबीसी एवं वंचित तबके के लिए आरक्षण व अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त करने वाले कर्पूरी जी को भारत रत्न मिलने पर अन्य जातियों को जैसे सांप सूंघ गया है जबकि कर्पूरी ठाकुर जी का गुणगान करने में अन्य ओबीसी जातियों की भरमार मैंने स्वयं देखी व सुनी है वहीं राम मंदिर का निर्माण कर भक्ति में लीन करने वाली भाजपा भी कर्पूरी जी की जाति को राजनीतिक शक्ति प्रदान करने को तैयार नहीं है मैं पूछना चाहता हूं देश के प्रधानमंत्री श्री मान नरेंद्र मोदी जी से कि जब अधिकांश जातियों को सत्ता में हिस्सेदारी दी जा सकती है तो कर्पूरी जी की जाति को क्यों वंचित रखा गया है यदि भाजपा के लोग सचमुच कर्पूरी जी से प्रेम करते हैं तो अन्य जातियों की तरह सैन सविता समाज को सत्ता की ताकत प्रदान क्यों नहीं करते, मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि भले ही देश में केन्द्र सरकार ने राममंदिर का निर्माण किया हो लेकिन इन्हें सत्ता में हिस्सेदारी देने से बड़ा उपकार नहीं हो सकता इतना ही नहीं आज मोदी जी को आरक्षण विरोधी माना जा रहा है जिसका मैं समर्थन करता हूं क्योंकि यदि मोदी सरकार पिछड़ों अतिपिछड़ों की रक्षक होती तो न सिर्फ लैटरल एंट्री बल्कि यूनिवर्सिटी में वीसी सांसद विधायक मंत्री मुख्यमंत्री भी बना दिए होते तो कर्पूरी जी की आत्मा भी खुश होकर कह रही होती की मोदी जी वाकई वंचित वर्गों के शुभचिंतक है जो आजादी के बाद से अब तक नहीं कर सका मोदी जी ने कर दिखाया लेकिन यह क्या भारत रत्न तक सीमित कर दिया क्या भारत रत्न से सामाजिक सम्मान मिल सकता है क्या पंडोखर जैसे पाखंडी जातिगत सम्मान दे सकते हैं हालांकि मोदी जी ने तो भारत रत्न दे भी दिया आजादी के बाद से अब तक रही सरकारें कुछ नहीं दे सकी मुझे तो अफसोस है एमबीसी के अधिकारों का रोना रोने वाले सपा बसपा कांग्रेस से कि ये लम्बे समय सरकार चलाने के बाद एमबीसी के अधिकारों का रोना रोते रहे और आज सर्वाधिक समय सरकार चलाने वाले राहुल गांधी मोदी सरकार में ज्वाइंट सेक्रेटरी और सेकेट्री की गिनती बता रहे हैं लेकिन एक बार यह बताने को तैयार नहीं है कि उनकी सरकार में आरक्षण के हिसाब से कितने ज्वाइंट सेक्रेटरी सेकेट्री की नियुक्ति की गई थी यही हाल सपा बसपा का है जिनकी सरकार में दिखाने और खाने के दांत अलग-अलग रहे, यूपीए की सरकार में मुख्य विपक्षी दल होने के बावजूद एमबीसी की अनदेखी की गई और आज मोदी सरकार के चलते सबसे बड़े हमदर्द होने का दावा कर रहे हैं यदि एमबीसी से प्रेम का दिखावा नहीं है तो लोकसभा चुनाव को ध्यान में रख अपने अपने दलों से जनसंख्या अनुपात में प्रत्याशी बनाने का काम करें मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि सपा बसपा कांग्रेस भाजपा जो सत्ता में हिस्सेदारी देने का काम करेगा सबसे बड़ा हमदर्द कहलाएगा। और जो भी अपनी सत्ता या सरकार में हिस्सेदारी देने का काम करेगा वह सबसे बड़ा शुभचिंतक होग वरना झूठा प्रेमी कहलाने से शायद ही कोई रोक पाएगा।
विनेश ठाकुर, सम्पादक
विधान केसरी, लखनऊ