आरक्षित देशवासी कृपया ध्यान दें निजीकरण की तरफ जा रहा है अपना देश

 

अब ये देश भर में काम करने वालों की कामचोरी है या सरकार की सीनाजोरी यह तो जनता बता सकती है या देश की सरकार। फिलहाल देश में ऐतिहासिक महापुरुषों को भारत रत्न नियुक्तियों में आरक्षण की नाम मात्र व्यवस्था और चुनाव जीतने की जुगाड़बाजी लैटरल एंट्री से केंद्र सरकार के सिनियर अधिकारियों की नियुक्ति विश्वविद्यालय वीसी प्रोफेसर आदि के साथ साथ केंद्रीय व राज्य मंत्रिमंडल में पिछड़ों अतिपिछड़ों की हिस्सेदारी ने साफ कर दिया है कि वर्तमान में अपना देश तेजी के साथ निजीकरण की ओर जा रहा है जिसका नुकसान किसी को हो न हो लेकिन आरक्षण पाने वाली जातियों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

कामचोरी, सीनाजोरी अथवा मजबूरी ?

लेकिन इन जातियों के बड़बोले संगठन व खुद नेता हजारों हजार संगठन बनाकर चंदे बाज़ी में जुटे हैं और इन्हें शर्म आने को भी तैयार नहीं है।हालांकि केवल ज्वाइंट सेक्रेटरी सेकेट्री की नियुक्तियां ही नहीं अन्य कई बड़े विभागों का निजीकरण वर्तमान सरकार द्वारा किया जा चुका है और ज्वाइंट सेक्रेटरी की नियुक्ति बीते साल भी बड़े पैमाने पर करके सरकार जनता का रूख भी भांप भी चुकी है। शायद इसीलिए एक दो तीन नही बल्कि ज्वाइंट सेक्रेटरी व डायरेक्टर मिलाकर पूरी सैकड़ों नियुक्तियां कांटैक्ट बेस पर करने को बाकायदा विज्ञापन भी निकाल कर आवेदन मांगे गए हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है क्या प्रधानमंत्री आरक्षित वर्ग से किया गया वह वायदा भुला चुके हैं जिसमें उन्होंने साफ शब्दों में आरक्षण पर आंच नहीं आने देने को कहा था। मैं इस देश का नागरिक होने के नाते देश के प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी से पूछना चाहता हूं कि क्या उन्होंने आरक्षण बचाए रखने को निजी क्षेत्र में आरक्षण देने की व्यवस्था की है। जहां तक मुझे ज्ञान है कि निजी क्षेत्र में अभी तक आरक्षण देने की व्यवस्था नहीं है और न्यायाधीशों की नियुक्ति करने को बनी कोलेजियम व्यवस्था बदस्तूर जारी है। इसके बावजूद जमीन से जुड़ेप्रधानमंत्री को इतने महत्वपूर्ण पदों पर ठेका व्यवस्था से नियुक्ति करना शोभा नहीं देता। मैं दावा कर सकता हूं कि भले ही भाजपा या संघ के लोग देश में बंपर बहुमत का श्रेय गैर आरक्षित जातियों को देते रहे लेकिन इमानदारी की बात करें तो मोदी जी को प्रधानमंत्री बनाने में सबसे बड़ा योगदान आधे से ज्यादा वोट रखने वाले ओबीसी का रहा है। लेकिन यह भी किसी से छिपा नहीं है कि वर्तमान सरकार ने सामाजिक आर्थिक शैक्षणिक आधार पर सभी जातियों एवं धर्मों को समाज की मुख्य धारा में लाने वाली संवैधानिक व्यवस्था को गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम का हथियार बनाकर धार कुंद करने का काम किया है हालांकि मैं यह भी दावे के साथ लिख रहा हूं कि आजादी के बाद से देश को पीछे ले जाने या बेरोजगारी बढ़ाने में अधिकारियों कर्मचारियों की कामचोरी का बड़ा योगदान रहा है। यदि भारी-भरकम सेलरी पाने वाले कर्मचारियो अधिकारियों ने अपने वेतन का पचास प्रतिशत भी काम ईमानदारी से किया होता और कमीशनखोरी थोड़ी सी भी कम कर दी होती तो आज देश पर महंगाई के कारण भुखमरी, बेरोजगारी, कमीशन खोरी व बेसिक शिक्षा सहित अधिकांश क्षेत्र मजबूत स्थिति में खड़े दिखाई देते। जब निजी स्कूलों में पांच दस हजार रूपए प्रतिमाह पाने वाला शिक्षक शिक्षा की गुणवत्ता सही रख सकता है तो 70-80 हजार रुपए पाने वाला क्यों नहीं शिक्षा की क्वालिटी सुधार सकता। आज चारों तरफ चर्चा है कि चाहे रेल हों या प्लेन चाहें बिजली हों या पानी चाहे डीजल हो या पैट्रोल चाहें शिक्षा हों या स्वास्थ्य यहां तक कि 17-18 साल नौकरी करके ज्वाइंट सेक्रेटरी व डायरेक्टर जैसे पदों पर भी निजीकरण करने का काम किया जा रहा है। मुझे उम्मीद है कि देश के प्रधानमंत्री इस ओर ध्यान देकर भाजपा व अपनी सरकार को बदनाम नहीं होने देंगे और न ही आरक्षण पर कुठाराघात बर्दाश्त करेंगे। फिर भी जब तक कामचोरी खत्म नहीं होगी तब तक निजीकरण रोक पाना शायद सरकार के लिए मुश्किल भरा काम होगा।

मुख्य सम्पादक, विधान केसरी
            विनेश ठाकुर