न सरकार न जनाधार, कैसे करोगे चुनावी तकरार
वर्तमान में सभी दल लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगे हैं। बात उत्तर प्रदेश की करें तो सपा, बसपा, कांग्रेस तीन पार्टी मुख्य रूप से भाजपा को हराकर अगली सरकार बनाने का दावा कर रही हैं लेकिन मतदाताओं को बेवकूफ समझने वाले इन दलों से मैं पूछना चाहता हूं कि भईया इस समय आप लोगों की सरकार नहीं है फिर किस तरह आप लोग चुनावी तकरार होने पर अपने मिशन में सफल हो सकते हो। सबसे पहले मैं उत्तर प्रदेश में कई बार मुख्यमंत्री रह चुकी बसपा मुखिया मायावती से पूछना चाहता हूं कि जब आप उत्तर प्रदेश में अच्छी खासी सरकार चलाने के बाद लोकसभा चुनाव में कोई खास उपलब्धि नहीं पा सकी तो इस चुनाव में कैसे पा सकती हो। क्या आपको पता नहीं कि जिस मतदाता की आप ठेकेदारी करतीं हैं वह पचास प्रतिशत तब आपके साथ रहता जब उसे पता होता कि सीटें ज्यादा आएगी तो बहन जी मुख्यमंत्री बनेंगी लेकिन यह लोकसभा का चुनाव है जहां से अकेले दम पर आपको एक भी सीट शायद मिल सकें। आदरणीय बहन जी क्या आपको पता नहीं कि वर्तमान में बसपा के पास केवल एक विधायक है उसे आप भले ही बसपा का मानें जबकि हकीकत में वह अपनी लोकप्रियता के आधार पर चुनाव जीतकर आता है और आप अकेले दम पर लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही हैं।क्या आपको यह भी पता नहीं कि जिन्हें आपने हाथी के निशान पर किसी तरह प्रत्याशी बनाकर जिताया था, दरअसल वह सभी समाजवादी पार्टी के आशीर्वाद से लोकसभा पहुंचे थे उन्हें बसपा से लगाव नहीं था और ना ही आपने उन्हें बसपाई मानकर प्रत्याशी बनाया था। किसी को बताने की जरूरत नहीं पड़ी कि बसपा ने उन्हें किस तरह प्रत्याशी घोषित किया है, तभी तो उनमें से कई चलते बने। मुझे लिखने में कोई संकोच नहीं है आपने मान्यवर कांशीराम जी द्वारा स्थापित की गई बसपा को उसी समय पीछे धकेलना शुरू कर दिया था जब बसपा के पुराने सिपाहियों को एक एक करके लाईन हाजिर न करके सीधा बर्खास्त कर डाला। आज भी भले ही आप देश में बड़ी दलित नेता हैं लेकिन विधानसभा व लोकसभा का आधार और मतदाताओं का जनाधार आपके पास नहीं बचा है। इससे तो खुलकर कांग्रेस या सपा को वोट ट्रांसफर कर दें ताकि इमानदारी से भाजपा के खिलाफ लड़ने वाले इन दलों को मजबूती मिल सकें क्योंकि आपके इधर-उधर या गलतफहमी में रहने से मजबूत विपक्ष खड़ा रहने की उम्मीद भी खत्म होती जा रही है। कोई भी पत्रकार या देश प्रेमी नागरिक देश के लोकतंत्र को मजबूत रखना चाहता है जो बिना विपक्ष की मजबूती के सम्भव नहीं है।
यदि मैं पीडीए की वास्तविक स्थिति की बात करूं तो शायद पीडीए का नामकरण करने वाले अखिलेश यादव को पिछड़ा, दलित व अल्पसंख्यक की वास्तविक स्थिति का ज्ञान नहीं है यदि ज्ञान होता तो अखिलेश यादव आज देश में बड़े नेता न सही कई बड़े दलों के नेताओ के समकक्ष मानें जाते, लेकिन वह तो जाट, यादव, कुर्मी, क्षत्रिय, वैश्य, ब्राह्मण में उलझकर रह गए जबकि सरकार की आवश्यकता तो अगड़ों-पिछड़ों को कम अतिपिछड़ों दलितों को ज्यादा होती है या यू कहे कि धन, धरती शिक्षा सम्मान से वंचित जातियों को होती है। अपनी जाति को मजबूती देना तो कुछ हद तक ठीक है लेकिन अपनी ही जाति को साथ लेकर चलना जरूरतमंद जातियों के साथ अन्याय से कम नहीं है। कभी आप सीएम आवास को गंगाजल से धुलवाने का विरोध करते हैं तो मंदिर जाने से रोक लेने पर शोर मचाते हैं और जब आपकी ही पार्टी में अपनी जान दांव पर लगाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य जातिगत भेदभाव का विरोध कर संविधान की बात रखते हैं तो आप सीधे किसी प्रसिद्ध धार्मिक स्थल पर जाकर पूजा करते हैं। घर में धार्मिक अनुष्ठान या देव दर्शन कोई गलत नहीं है जो सभी को करना चाहिए लेकिन खुद को शूद्र बताकर या सनातन पूजा पद्धति का पालन कर वोट के लिए खुद को शूद्र बताना उचित नहीं है और यदि वाकई आप शूद्र हैं तो क्यों नहीं पाल, प्रजापति, सैनी, कश्यप, कुम्हार, सुनार, लुहार, बढ़ई, सैन, सविता, नंद आदि जातियों को उनकी जनसंख्या अनुपात में टिकट वितरण कर लोकसभा, विधानसभा राज्यसभा व विधानपरिषद में भेजकर इन जातियों की आवाज बुलंद करने का काम करें। यहाँ कांग्रेस के बारे में तो बात ही करना बेकार है क्योंकि कांग्रेस या उसकी सरकार ही जरूरत मंदों की आवाज बनती तो लाख प्रयास करके भी वर्तमान सरकार न आई होती। आज राहुल गांधी चिल्ला-चिल्ला कर पिछड़ों अतिपिछड़ों की बात कर रहे हैं लेकिन लम्बे समय तक सरकार चलाने वाली कांग्रेस ने भले ही दो-चार ओबीसी एससी एसटी को या यूं कहें आरक्षित जातियों को अपना कार्यकर्ता समझकर कही एडजस्ट कर दिया हो लेकिन जनसंख्या अनुपात में हिस्सेदारी देने का काम नहीं किया। रही बात वर्तमान सरकार की तों सनातन सरकार व पाखंडवाद की हमेशा हमदर्द रही अतिपिछड़ी जातियों को भाजपा सरकार ने भले ही फ्री राशन व मजदूरी की नौकरी एवं राममंदिर आदि देकर इनकी नजर में खुद को सबका हितैषी होने का दावा किया हो लेकिन देश की इस सैंतीस प्रतिशत अतिपिछड़ी जातियों का स्तर तो क्या उठता इन्हें जनसंख्या अनुपात और जनगणना कराकर हिस्सेदारी से वंचित रखा, जबकि आज भी अतिपिछड़ी जातियों के लोग अन्य दलों की राजनीति न करके शत प्रतिशत भाजपा के साथ रहते आ रहें हों लेकिन मजबूरी समझकर सदनों में इन्हें हिस्सेदारी नहीं दी। जब सैन सविता नंद सहित दर्जनों जातियों के लोग कभी विधान सभा लोकसभा में नही पहुंच सकें। मुख्य राजनीतिक दल तीसरी बार ही सही यदि वर्तमान लोकसभा चुनाव में जनसंख्या अनुपात में हिस्सेदारी बांट देती तो सबसे ज्यादा भरोसेमंद दल और सरकार कहलाती लेकिन जब मांगने वाले ही लकीर के फकीर बने हो तो क्या भाजपा बसपा या क्या सपा कांग्रेस क्योंकि इनकी राजनीति करने वाले लोग।
सब पानी में काटा डालें बैठे हैं या यूँ कहे कि झूठे सच्चे सपने पाले बैठे हैं। एक बिमार वसीयत करने वाला है, रिश्ते नाते जीभ निकालें बैठे हैं।
विनेश ठाकुर, सम्पादक
विधान केसरी, लखनऊ