ऐतिहासिक पुरूषों में नाम शामिल कराने को कांशीराम बनना आसान नहीं
(उन्हीं के एक सिपाही का स्मरण) आज भले ही देश प्रदेश के तमाम नेता खुद को जनता का रहबर स्वाभिमान का धनी या खुद को कितना भी देश भक्त होने का दावा करता हों लेकिन मान्यवर कांशीराम जी का नाम आते ही देश का हर नेता अदना हो जाता है आज मैं एक अखबार की कटिंग पढ़ रहा था जिसे पढ़कर अपने पाठकों व समाज के समक्ष रख रहा हूं हालांकि कांशीराम जी के कई किस्से हैं जिसमें उन्होंने एक दो बार नहीं बल्कि अपने राजनैतिक जीवन में हजारों बार किए होंगे फिलहाल उस अखबार की कटिंग राजनीति में तेजी आ रही नई पीढ़ी को सिद्धांतवादी बनाने का काम करेगी।
सरकार में होने के बावजूद लालबत्ती गाड़ी में नहीं बैठे थे मान्यवर कांशीराम
अखबार में छपी खबर के लेखक ने लिखा है कि मान्यवर कांशीराम जी के सहयोगी रहे श्री आर चौधरी उन दिनों स्वस्थ थे तो मैं भी श्री चैधरी को देखने राममनोहर लोहिया अस्पताल गया था तब चौधरी साहब ने अपने पुराने दिनों की बात याद करते हुए अपना एक किसान बताया था जो इस प्रकार था काशीराम साहब विप गेस्ट हाउस में रुके हुए थे सपा बसपा की गठबंधन की सरकार थी और सब को दिल्ली जाना था दोनों लोग गेस्ट हाउस से बाहर लखनऊ एयरपोर्ट के लिए निकलतेहैं काशीराम साहब चौधरी जी से कहतेहैं की एयरपोर्ट चलने के लिए गाड़ी कहां है चैधरी जी ने साहब को बताया कि लाल बत्ती लगी गाड़ी आपके लिए लान में खड़ी हुई है मान्यवर ने कहा कि मैं तो मंत्री नहीं हूं तो लाल बत्ती लगी एम्बेसडर मेरे लिए कैसे हो सकतीं हैं और मैं कैसे उसमें बैठ सकता हूं तो चौधरी जी ने जबाव दिया कि नहीं साहब यह गाड़ी भले ही मेरे नाम एलाट है लेकिन सबकुछ आपका किया हुआ है आपकी वजह से यह गाड़ी हमें मिली है तब मान्यवर का कहना था कि नहीं नहीं हम इसमें नहीं जा सकता वो पीछे दूर खडी गाड़ी किसकी है तो चौधरी साहब ने बताया कि यह साहब यह गाड़ी मंत्री बनने से पहले की है जो मेरी है मैं उसी गाड़ी से चलता था तब साहब ने कहा ठीक है ड्राईवर बुलाओ मैं इसी में चलूंगा हम तुम्हारी इसी गाड़ी से एयरपोर्ट जाएंगे। चौधरी साहब ने कहा जैसी आपकी इच्छा चौधरी साहब ने लेखक को बताया कि जैसे ही हम दोनों निजी गाड़ी में बैठकर एयरपोर्ट जातें समय कैंट क्षेत्र में पहुंचे तो साहब कहने लगे कि चैधरी ये बताओ वो हमारा एक चैहान और निषाद मंत्री बना था उनका मुझे नाम याद नहीं है तो चौधरी साहब ने बताया कि वह दोनों भी पीछे पीछे आ रहें हैं। तो साहब ने कहा वह भी लालबत्ती लगी गाड़ी में ही तो आ रहें होंगे, चौधरी साहब का जबाब था हा साहब दोनों लालबत्ती लगी गाड़ी से ही आ रहें हैं इतना सुनकर साहब ने मेरी तरफ देखते हुए कहा कि चौधरी आज मेरा सपना पूरा हो गया मैं यही चाहता था कि जो समाज मेहनत मजदूरी कर रहा है और उत्पीड़न भी झेल रहा है वह समाज शासक बने, लालबत्ती लगी गाड़ी से चलें इतना कहकर काशीराम साहब रोने लगे तो मैं भी रोने लगा ।
मित्रों आज यह खबर पढ़कर मेरी भी आंखों में आसूं है जिन्हें मैं रोकने का प्रयास नहीं कर रहा हूं लेकिन गलतफहमी के शिकार अपने भोले भाले गरीब सम्मान हीन समाज को लालबत्ती की गाड़ी में बैठाकर शासक बनाना चाहता हूं।
यह लेख एक अखबार से लिया गया है जिसका संशोधन करके मेरे द्वारा करके पढ़ने व ऐसे माहमानव को याद करने के लिए प्रकाशित किया जा रहा है आशा है आपको पसंद आएगा।
विनेश ठाकुर ,सम्पादक
विधान केसरी, लखनऊ