जन्म दिन पर विशेष: बाबासाहेब हम शर्मिंदा भी नहीं है

आज संविधान निर्माता बाबा साहेब डा भीमराव आंबेडकर का जन्म दिवस है जिसे बीते कई बरसों से बड़े पैमाने पर मनाने की शुरुआत हुई तो फिर प्रत्येक वर्ष तेजी पकड़ती गई और देखते ही देखते एक दिन ऐसा भी आया जब बाबा साहेब को अपशब्द कहने वाले भी वोट के चक्कर में ही सही न सिर्फ उनकी फोटो गले में डालकर घूमने लगे, बल्कि राम राम, नमस्कार, सलाम वालेकुम की जगह जय भीम करते नज़र आए। लेकिन बाबासाहेब के द्वारा लिखित संविधान की बदौलत देश में चुनें जाने वाले अनूसूचित व पिछड़ी जाति सैकड़ों सांसद उनके संविधान की रक्षा नहीं कर सकें और शर्म की बात तो यह है कि कोई खुलें शब्दों में यह नहीं बता सका कि वह बाबासाहेब के नाम को सत्ता पाने का हथियार समझकर छलावा कर रहा है या उनके बताए रास्ते की अनदेखी करके उनका प्रेमी होने का दिखावा कर रहा है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि बाबासाहेब के नाम पर सत्ता तक पहुंचने वाले दलों ने शर्म के मारे ही सही दिल से उनकी बात मानी होती तो आज भारत की सरकार ही नहीं दुनियाभर के मिडिया न्यापालिका कार्यपालिका व व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर बाबासाहेब के अनुयायियों की मजबूत हिस्सेदारी किसी से छिपाएं नहीं छिपती। यदि इतिहास के पन्नों को पलटें तो बाबा साहेब खुद लंबे समय तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे और सम्पादन कार्य किए, जब जब उन्हें मौका मिला तो वे अपने शुभचिंतकों को मीडिया का महत्व बताना नहीं भूले। विभिन्न लेखों में प्रमाण मिलते हैं कि उन्होंने अपने जमाने के मीडिया पर दलितों की अनदेखी करने का आरोप लगाया और कहा कि दलित समाज के लोग जागरूक व सम्पन्न होने के बाद यदि अपना सही बात कहने वाला मीडिया नहीं तैयार कर सकें तो यह समाज के दबे-कुचले लोगों के लिए अभिशाप से कम नहीं होगा। मैं यह भी दावे के साथ कह सकता हूं कि बाबा साहेब का नाम लेकर कुमारी मायावती मुलायम हो या रामविलास पासवान अथवा अठावले सहित तमाम राजनेताओं ने सत्ता हासिल की लेकिन बाबा साहेब के मिडिया तैयार करने वाले सपने को साकार नहीं कर सकें। और भाजपा भी बाबा साहेब का नाम लेकर केंद्र की सत्ता हासिल करने वाला दल है जो भले ही खुद को आरक्षित वर्ग का हितैषी होने का दंभ भरता हों परंतु दूरदर्शन पर रामायण महाभारत सहित तमाम सिरियल दिखाने के साथ साथ डाक्टर अंबेडकर द्वारा लिखित संविधान पर कोई फिल्म नहीं दिखा सकी। मजेदार बात तो यह है इसकी मांग खुद को बड़ा सामाजिक संगठन मानने वाले दलित नेताओं ने भी नहीं की, हालांकि बधाई के पात्र हैं आरक्षित वर्ग के वह नेता जिन्होंने न सिर्फ छोटे छोटे मीडिया घरानों को कटघरे में खड़ा किया बल्कि आरक्षण और ग़रीब वर्ग से भेदभाव रखने वाले बड़े बड़े मीडिया घरानों को भी नहीं बख्शा और एक जमाने में कांशीराम जी ने तो एक मीडिया कर्मी को ऐसे थप्पड़ जड़े कि उसने आज तक भेदभाव की पत्रकारिता नहीं की,जबकि बाबा साहेब ने भारत में सबसे ज्यादा शैक्षिक योग्यता रखने के बावजूद मिडिया के महत्व को समझा और कई मौकों पर खुलें शब्दों में मिडिया की निंदा करते हुए कहा था कि यह मनुवादी मिडिया है जो कभी दलितों की आवाज नहीं बन सकता , हमेशा आलोचना में लगा रहता है जिसका मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता। उनके समय का इतिहास बताता है कि बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर को उसी समय समझ में आ गया था कि देश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं व रेडियो संचार आदि पर एक वर्ग विशेष का कब्जा है इसलिए जो लड़ाई मैं लड़ रहा हूं उसमें मेंन स्ट्रीम मीडिया उनके लिए उपयोगी साबित नहीं होगा, बल्कि उन्हें वहां से प्रतिरोध ही झेलना पड़ेगा जिस कारण डॉक्टर अंबेडकर को मूकनायक, बहिष्कृत भारत, प्रबुद्ध भारत जैसे समाचार पत्र निकालने पड़े और उनका संपादन लेखन का कार्य भी खुद ही संभाला। डाक्टर अंबेडकर ने अपने सामाजिक राजनीतिक आंदोलन को मीडिया के माध्यम से ही चलाया और अछूतों के अधिकारों की आवाज उठाई।

बताते हैं कि बाबा साहब ने पहली पत्रिका मूकनायक प्रकाशित की तो बाल गंगाधर तिलक ने अपने केसरी नामक समाचार पत्र में मूकनायक का विज्ञापन छापने से इंकर कर दिया इसके बावजूद उन्होंने तमाम पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से अपने द्वारा लड़ी जा रही सामाजिक लड़ाई लड़ी जिसका लाभ आज भारत का प्रत्येक दलित पिछड़ा मतदाता ले रहा है । 1945 में जब ऑल इंडिया शेड्यूल कास्ट फेडरेशन ने अपने साप्ताहिक मुखपत्र पीपल्स हेराल्ड की शुरुआत की इस पत्र का मुख्य उद्देश्य अछूतों की आकांक्षाओं मांगो और शिकायतों को स्वर देना था इस पत्र के उद्घाटन कर्ता की हैसियत से डॉक्टर अंबेडकर ने कहा कि आधुनिक प्रजातांत्रिक व्यवस्था में अच्छी सरकार के लिए समाचार पत्र मूल आधार है इसलिए भारत के अनुसूचित जाति के अतुलनीय दुर्भाग्य और दुर्दशा को खत्म करने में तब तक सफलता नहीं मिल सकती जब तक हम खुद के स्वामित्व वाले छोटे बड़े समाचार पत्र का प्रकाशन न करें और लोगों को शिक्षित करें कि विधायकों के व्यवहार की रिपोर्टिंग करते हुए यह समाचार पत्र लोगों से कहे कि विधायकों से पूछो कि ऐसा क्यों हैं इससे विधायकों के व्यवहार में बड़ी तब्दीली आ सकती है। उन्होंने कहा था कि इस समय वर्तमान व्यवस्था जिसके भोगी हमारे समुदाय के लोग हैं इस पर रोक लग सकती है इसलिए मैं इस समाचार पत्र को एक वैसे साधन के रूप में देख रहा हूं जो गलत दिशा में गए लोगों का शुद्धिकरण कर सकता है। खास बात यह रही कि समाचार पत्र पत्रिकाएं निकालने का दौर बसपा संस्थापक कांशीराम तक के समय तक तो चला और उन्होंने भी अपने आंदोलन की शुरुआत बहुजन संगठक नामक समाचार पत्र से करकेअपने विचारों को देश और दुनिया में फैलाया, लेकिन सत्ता हासिल करने वाले लोग शोषण करने वालों के चंगुल में फसने के बावजूद मिशन तो चलाते रहे परंतु इस मीडिया आंदोलन को नहीं चला सके। जिस कारण आपके सपनों को साकार करने आए सभी दलों का बुरा हाल है खास बात तो यह भी है कि भले ही बाबा साहब के नाम पर इन लोगों ने सत्ता हासिल कर ली हो लेकिन बड़े बड़े मिडिया घराने बनाकर अथवा व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर अपने लोगों को काबिज कराकर उन्हें स्थाई रूप से रोजी-रोटी रोजगार व सम्मान उपलब्ध नहीं करा सके। चलिए आज बाबा साहब का जन्म दिन है जिसे भले ही डर के मारे या अन्य मजबूरी वश सार्वजनिक स्थानों पर न मनाया जा रहा हों लेकिन आज दलित पिछड़े समुदाय के लोग उन्हें अपने घरों में भगवान की तरह पूज रहे हैं। जो दुनिया में नए भारत की स्थापना का शुभ संकेत देता है। लेकिन सत्ता को इग्नोर कर आरक्षित वर्ग के सबसे ज्यादा वोट रखने वाले बिना अपना घर सुधारें सामाजिक धार्मिक बदलाव में लगे हैं जो जरुरी तो लेकिन संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने में देर करने वाला है खैर विधान केसरी परिवार गरीबों के इस मसीहा को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करता है। और वोटों के एजेंटों से कहना चाहता है कि बाबासाहेब द्वारा लिखित संविधान में जिस तरह से प्रत्येक जाति धर्म के अधिकारो की वकालत की गई है उसका ध्यान रखकर बाबासाहेब के जन्मदिन पर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करें।

विनेश ठाकुर ,सम्पादक
विधान केसरी, लखनऊ