Sonebhadra प्राइवेट विद्यालय अभिभावको से ड्रेस,किताब,जूता, मोजा,पर लूट रहे हैं मोटी रकम चुनिंदे दुकानों पर भेज कर करवाते हैं खरीदारी।

दुकान दार भी शालीनता से नही आता पेस हमेसा अपने तेवर में भी करता है बात अभिभावक भी उसी दुकान पर जाने को हैं बेवस।

दिनेश पाण्डेय: रॉबर्ट्सगंज ब्लाक अंतर्गत संचालित प्राइवेट विद्यालय अभिभावको के जेब को करा रहे हैं खाली चुनिंदे दुकानों पर भेज कर करवा रहे हैं अवैध कमाई बच्चो को पढ़ाने के लिए हुए बेवस दुकान दार से सेटिक करके हो रहा हैं पूरा काम शहर में अनेकों पुस्तक विक्रेता होने के बावजूद अभिभावक कुछ गिनी-चुनी दुकानों से बच्चों की पुस्तकें खरीदने के लिए मजबूर हैं।कोई अभिभावक सोशल मीडिया पर आकर तो कोई मुह जुबानी अपनी पीड़ा को बता रहा है।रॉबर्ट्सगंज नगर में एक कपड़े की दुकान व दो स्टेसनरी की दुकान हैं जहाँ स्कूल का सेटिंग है। बहुत सी छोटी-मोटी चीजें हैं जो अभिभावकों की जेब पर भारी पड़ रही हैं। अभिभावकों ने महंगी और एक ही दुकान में बिक रही पुस्तकों को स्कूल और दुकानदारों की मिलीभगत बताया पर किसी ने भी अपना नाम बताने से इंकार किया। सभी को डर था कि स्कूल का विरोध करने पर बच्चों को खामियाजा भुगतना पड़ेगा। उन्होंने बताया स्कूल वाले कह देते हैं कि किसी भी दुकान से किताब ले लीजिए, लेकिन जब वह मिलती ही एक दुकान में है, तो हम कहीं और से कैसे पुस्तकें खरीद लें। नोटबुक में स्कूल का नाम लिखा रहता है फिर स्कूल वाले पास की दुकान में यह मुहैया क्यों नहीं कराते। स्कूल के नाम की पुस्तक केवल एक दुकान पर उपलब्ध
स्कूल के नाम के साथ छपी नोटबुक सब दुकानों पर नहीं मिलती हैं और न ही उनके द्वारा दी गई पुस्तकों की सूची। किताबें भी ऐसी होती हैं जो ऑनलाइन ढूंढने पर भी नहीं मिलती।
हर साल किताबों में क्यों किया जाता है। पर हर साल पुस्तकों में एक-दो पेज में बदलाव कर देते हैं, जिससे नई किताबें लेनी पड़ती हैं। इसके लिए कोई मापदंड तय क्यों नहीं है कि कितने समय के बाद पुस्तकों के नए संस्करण या उनके कुछ पृष्ठों में बदलाव किया जाएगा। किताबों के कवर को भी बदल देते हैं जिससे हमें पता नहीं चल पाता कि यह पुस्तक का वहीं संस्करण है या पुराना।।