गोला खीरी: आस्था-लोक संस्कृति का अनूठा संगम है भूतनाथ का मेला

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विधान केसरी समाचार

गोला खीरी । भगवान शिव की नगरी छोटी काशी में कई शिवालय और दर्शनीय सिद्ध स्थल हैं। इनमें भूतनाथ नाम से प्रसिद्ध अनोखा जुड़वा मंदिर और प्राचीन कुआं है। यहां सावन माह में नाग पंचमी के बाद जो सोमवार पड़ता है, उस पर मेला लगता है। यह मेला आस्था और लोक संस्कृति का संगम है।

गोला गोकर्णनाथ पर शोध प्रबंध लिख रहे साहित्यकार लोकेश कुमार गुप्त ने बताया कि सरस्वती तट पर शैव संप्रदाय के संत बाबा भूतनाथ का आश्रम था। बाबाजी सर्प विद्या के अद्भुत जानकार और विद्वान थे। उनके आश्रम में ही विभिन्न प्रजातियों के नाग व सर्प विचरण करते थे। महाभारत काल में जन्मेजय ने देवकली तीर्थ पर नाग यज्ञ कराया। इसमें बाबा जी ने अपनी सर्प विद्या का प्रदर्शन किया था।बाबा जी के आश्रम में नाग पंचमी को मेला लगता था। इसमें हजारों की भीड़ इकट्ठी होती थी। बाबाजी के पंचतत्व में विलीन होने के बाद नाग पंचमी के बाद होने वाले सोमवार को मेला शुरू हो गया। शिवजी के अनन्य भक्त बाबा भूतनाथ की कुटिया में स्थापित शिवलिंग उन्हीं के नाम से पूजा जाता है।

एक आस्थापूर्ण किवदंती भी है कि रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी रावण की कावड़ में बैठकर लंका के लिए चले। चलने से पूर्व शिवजी ने शर्त लगा दी कि यदि कहीं पर रख दिया तो वह वहीं स्थापित हो जाएंगे। यहां आने पर शिवजी की माया से रावण को लघुशंका महसूस हुई, तो पशु चरा रहे एक चरवाहे को कांवड़ पकड़ा कर रावण नित्य कर्म से निवृत होने चला गया।

इस दौरान शिवजी अपना भार बढ़ाकर यहां स्थापित हो गए। लौट कर वापस आने पर शिव को स्थापित देखकर रावण ने चरवाहे का पीछा किया तो वह भय से कुएं में कूद गया तब से यह स्थान भूतनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

मनोकामना पूरी होने के लिए बांधते हैं गांठ

भगवान शिव के मंदिर से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर रेलवे लाइन किनारे वन क्षेत्र से सटे प्राकृतिक वातावरण में बाबा भूतनाथ का मंदिर है। यहां भव्य मेला लगता है, जो आस्था और लोक संस्कृति का परिचायक है। मेले में आए भक्त मंदिर और कुएं में गिट्टी फेंककर हू-हू की आवाज निकालते हैं। पतावर में मनोकामना लेकर गांठ बांधते हैं। जिन श्रद्धालुओं की कामनाएं पूरी होती है वह गांठ खोलते हैं। दूरदराज से आए ग्रामीण श्रद्धालु वाद्य यंत्रों पर ढोलक, मंजीरा, चिमटा तथा झांझ बजाकर लोक नृत्य करते हुए आल्हा और सावन गीत और भजन गाते हैं, जो मेले का विशेष आकर्षक तत्व है।

विलुप्त वस्तुओं के होते हैं दर्शन

आधुनिकता के दौर में जो चीजें विलुप्त होती जा रही हैं, उनके दर्शन भी भूतनाथ मेले में होते हैं। लोग इन्हें खरीदने के लिए दूर-दूर से आते हैं। मेले में हंसिया, खुरपी, बैलों के गले में बांधने वाली घंटी, पसाई के चावल, चिलम, नारियल के खोल से बने हुक्के, लकड़ी का फर्नीचर, कंदमूल फल सहित तमाम विलुप्त वस्तुओं के दर्शन भूतनाथ मेले में होते हैं।