बाराबंकीः ……और करें अपराध को और पाव फल भोग‘‘ वाली कहावत को चरितार्थ राजस्व विभाग

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विधान केसरी समाचार

बाराबंकी। ‘‘जब मांझी ही नाव डुबोने लगे तो यात्रियों को कौन बचाएगा‘‘ ऐसी ही दशा प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग की बन चुकी है। गल्ती सरकारी मोहकमें की है भोगते किसान या खाता धारक हैं। यह गल्तियां मामूली नही है वरन बहुत बड़ी हैं जिसको सुधारने के नाम पर सम्बंधित उपभोक्ता काफी धन व श्रम की बर्बादी करनी पड़ती हैं धन की खर्च की सीमा तो राजस्व विभाग के जिम्मेदार तय करते हैं।

प्रदेश के लोगों को राजस्व विभाग से अधिकाधिक सुविधा प्रदान करने के लिए उनके राजस्व अभिलेखों का डिजिटिलाइजेशन करवाया गया मगर यह प्रक्रिया उनके लिए सुविधाजनक कम मुसीबत ज्यादा बन गई हैं। इसमें अनेकों स्थानों पर कहीं नामांे में अन्तर कर दिया गया है तो लोगों के दर्ज रकबों में मनमाना अंकन करके उन्हें संकट में डाल दिया गया है। आज कल विकास के नाम पर जिस प्रकार से गांवों व कस्बों का शहरीकरण बढता जा रहा है उससे भूमि की लागत व मालियत में बेतहासा वृद्धि होती जा रही है। यहीं कारण हैं कि राजस्व अभिलेखों में जाने व अनजाने की व करायी गई गड़बडियां कास्तकारों के लिए काफी मुसीबत बन गई हैं। इसमें सबसे अहम भूमिका राजस्व लेखपालों और उसके ऊपर के अधिकारियों की हो चुकी है।
बहुत पहले से यह कहावत प्रचलित है कि लेखपाल के बाद सीधे राजपाल बीच का कोई अधिकारी कोई मायने नही रखता। किसानों की खेतौनी का कम्प्यूटराइजेशन करने के दौरान बहुत सारी गड़बड़ियां विभाग द्वारा की गई हैं जिसकी जानकारी तब होती है जब उसकी कोई आवश्यकता होती है तब भागदौड़ शुरु होती है और हायतौबा मचती है।

जिले की नवाबगंज तहसील के परगना नवाबंगज स्थित गांव ओबरी के कई मामले चर्चा में हैं किन्तु ताजा मामला इसी गांव (आवास विकास ओबरी से अलग) बैजनाथ व मोहन लाल पुत्रगण नरायन का प्रकाश में आया है। इन दोनों भाइयों की खतौनी संख्या 472ध्1 मिन रकबा आठ बिस्वा दर्ज कागजात था। इसमें से बड़े भाई बैजनाथ ने अपने हिस्से की चार विस्वा भूमि श्रीश्री 108 श्री राम गिरि नागा बाबा नैपाली उर्फ पहाड़ी बाबा चेला श्रीश्री 108 श्री ज्योतिगिरी नागा बाबा निवासी कुटी सिविल लाइन निकट चुंगी नाका बाराबंकी को पहले यंू ही बाद में आवास विकास के दबाव में 6.6.1988 को रजिस्टर्ड दान पत्र लिख कर दे दिया था जिसे मंदिर की ओर से आज तक दाखिल खारिज नही कराया जा रहा हैं जिस कारण से उक्त भूमि बैजनाथ के नाम की वरासत पहले उनके लड़के इन्द्र बहादुर सिंह तत्पश्चात उनकी बहू श्रीमती राजकुमारी के नाम चढ़ती चली आ रही है इसी वजह से राज कुमारी ने उक्त दान की हुई भूमि को चार सौ बीस करके आधा दर्जन से अधिक व्यक्तियों के नाम फिर से बैनामा करके दे दिया।

मजे की बात तो यह है कि जमीन एक इंच नही थी फिर भी उसका बैनामा होने के बाद तत्कालीन लेखपाल अथवा राजस्व निरीक्षक की फर्जी रिपोर्ट के आधार पर सम्बंधित नायब तहसीलदार साहबान ने उनका दाखिल खारिज करने में देरी नही की जबकि राजकुमारी को उठाकर जेल में डाल दिया जाना चाहिए था जो अभी तक नही किया जा रहा है। बताया जाता है कि राजकुमारी की इस 420 के गोरख धन्धे में मंदिर के जिम्मेदार भी शामिल हैं। यदि आज वह इसका दाखिल खारिज अपने नाम करा लेते तो जिन लोगों को फंसाकर उनसे लाखों की रकम ऐंठी गई है उसे राजकुमारी कतई न कर पाती आश्चर्य की बात है कि जिन लोगों ने बैनामे लिये हैं वह भी चुप हैं उसके खिलाफ कोई लिखा पढ़ी नही कर रहे हैं।

दूसरा प्रकरण बैजनाथ के भाई मोहन लाल का है। उसे इस खतौनी 472ध्1 मिन में चार विस्वा नैसर्गिक रुप से प्राप्त था जिसका उसने रजिस्टर्ड बैनामा सुरेश बहादुर सिंह पुत्र श्याम सिंह निवासी ग्राम डंड़ियामऊ परगना दरियाबाद, बाराबंकी के नाम करके अपने समान अधिकार व कब्जा दे दिया था जिसका दाखिल खारिज भी सुरेश बहादुर सिंह के नाम होकर अंकित अभिलेख हो गया। उसकी तत्समय गारे से बाउन्ड्री भी बनवा दी गई थी सब कुछ ठीक था। इसी मध्य खेतौनी का कम्प्यूटरीकरण शुरु हुआ। इस प्रक्रिया के तहत जिसका जो रकबा था उसके नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज था उसे ही हेक्ट0 में बदल कर दर्ज किया जाना था मगर बहुत सारे लोगों का बीघा, विस्वा और विस्वांसी को हेक्ट0 में बदलना नही आता था इसलिए अथवा किसी अन्य कारणों से उन्होने सम्बंधित रकबे में फेरबदल करके उसे दर्ज कर लिया।

आज जब उस खतौनी की कम्प्यूटरीकृत कापी निकलवायी जा रही है तो इस फ्राड का पता चलता है। फिर भाग दौड़ होने लगती है। बेजह की परेशानी झेलनी पड़ रही है। बैजनाथ व मोहनलाल के खतौनी संख्या 472ध्1 रकबा आठ विस्वा को बिना किसी ठोस कारण के 75 एअर (.075 हेक्टे0) करके 26 एअर भूमि गायब कर दी गई। अब इसके लिए सम्बंधित काश्तकार को इससे जुड़े राजस्व कर्मियों के यहां हाजिरी देनी पड़ती हैं उसे खतौनी में संशोधन के लिए जिम्मेदारों के यहां मुकदमा दायर करने को कहा जाता है। अर्थात देशी कहावत है कि ‘‘करै कोई भरै कोई‘‘ या दूसरे शब्दों में ‘‘और करें अपराध को और पाव फल भोग‘‘ वाली कहावत को राजस्व विभाग पूरी तरह चरीतार्थ कर रहा है।