ओबीसी की सेल, विश्लेषको या सियासत का मेल
सच्चाई से भागते विश्लेषक और दल , चंद्रशेखर को भी सीख दे गया हरियाणा चुनाव
2024 का लोकसभा चुनाव बीतने के बाद भले ही हरियाणा में हुई चुनावी हार पर कांग्रेस या भाजपा को लेकर विश्लेषकों द्वारा तरह तरह से जीतने और हारने वाले दलों की खूबियां और कमियां गिनाई जा रही हों लेकिन आज तक किसी लेखक विश्लेषक या राजनीति के जानकार ने हारने जीतने की सच्चाई स्वीकार करने या इस पर चर्चा करने का प्रयास नहीं किया। कि आजादी के बाद से अभी तक सभी दल अतिपिछड़ों की अनदेखी कर उन्हें सत्ता से दूर रखने की साज़िश करते रहे हैं जिसे अब अतिपिछड़ी जातियां पूरी तरह समझ चुकी है, मैं दावे के साथ कह सकता हूं चाहे हरियाणा चुनाव हो या देश में हुआ लोकसभा चुनाव केवल चालीस प्रतिशत अतिपिछड़ों की अनदेखी करने का परिणाम रहा है। मैं यह भी दावे के साथ कह सकता हूं कि कांग्रेस के मुखिया राहुल गांधी भले केंद्र व राज्य की सत्ता में आने को कितने भी ओबीसी हितैषी होने का दावा करते रहे लेकिन उनका यह प्रेम हरियाणा विधानसभा चुनाव में दूर-दूर तक दिखाई नहीं दिया ,जिस कारण हरियाणा में कांग्रेस का सत्ता तक पहुंचने का सपना अधूरा रह गया जबकि भाजपा के पास हरियाणा में सैनी चेहरा न सिर्फ पूरे हरियाणा के सामने था बल्कि पूरा देश जान रहा था कि हरियाणा में नायब सैनी को भाजपा फिर से मुख्यमंत्री बनाने जा रही है और हुआ भी वही भाजपा नायाब सिंह सैनी को आगे करके अतिपिछड़ों का बंपर वोट पाने में कामयाब रही और अतिपिछड़ों से झूठ मूठ का प्रेम दिखाने वाले कांग्रेसीयो की पोल खुल गई। ऐसा नहीं कि अतिपिछड़े इस चुनाव में भाजपा से पहले जैसा लगाव रखते थे लेकिन उन्हें भाजपा यह विश्वास दिलाने में कामयाब रही कि भाजपा को बहुमत मिला तो नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनने से कोई नहीं रोक पाएगा जबकि प्रत्येक व्यक्ति को यह भी पता था एक तो कांग्रेस ने टिकट वितरण में अतिपिछड़ी जातियों की जमकर अनदेखी की और बहुमत मिला तो हुड्डा जी के अलावा कोई मुख्यमंत्री नहीं बनेगा ऐसी स्थिति न सिर्फ कांग्रेस का ओबीसी प्रेम का ढकोसला अतिपिछड़ों की समय रहते समझ में आ गया बल्कि भाजपा वाले भी समझ गये कि अब देश में सर्वाधिक आबादी रखने वाले अतिपिछड़े सत्ता से कम पर समझौता करने को तैयार नहीं है इसलिए संघ और घटिया मानसिकता वाले भाजपाइयों की एक नहीं चल सकी और नायब सैनी हरियाणा के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। फिलहाल तो मैं यही कह सकता हूं देश या उत्तर प्रदेश में चंद्रशेखर को किसी बड़े दल से गठबंधन की नहीं बल्कि अपने बराबर हैसियत का अतिपिछड़ी जातियों में से एक एक जाति और मुस्लिम वर्ग से भी सामान्य और ओबीसी मुस्लिम नेता खड़ा करने की आवश्यकता है जिस पर कम कम हमें तो काम बढ़ता नहीं दिखाई दे रहा है।
चन्द्रशेखर के लिए प्राईमरी स्कूल बना हरियाणा चुनाव
हरियाणा का विधान सभा चुनाव जहां कांग्रेस के ओबीसी प्रेम की पोल खोलने में कामयाब रहा वहीं इस चुनाव ने तेजी से भारत की घटिया सियासत के लिए सिरदर्द बनते चंद्रशेखर को भी बता दिया कि भाई जिस तरह से तुम अकेले होने के बावजूद पहले दिन से गरीबों दलितों पिछड़ों मजलूमों की बात कर रहे हों अपने देश की सियासत यह सब नहीं चाहती इसीलिए तो भारत का राज्य मिडिया हों या केंद्रीय मीडिया चंद्रशेखर को इस तरह मक्खन पालिस के साथ प्रस्तुत कर रहा है जैसे वर्तमान में देश में चन्द्रशेखर से बड़ा कोई दलित नेता न हो जबकि परस्थिती इसके विपरित है लेकिन गलतफहमी तो बड़े बड़ों को बर्बाद करने की ताकत रखती जैसे ही चंद्रशेखर रावण ने नगीना लोकसभा चुनाव जीता वैसे ही इन्हें यह गलतफहमी हो गई कि अब तुम देश में पहले ऐसे नेता बन चुकें हों जो दलितों को जहां चाहे ट्रांसफर कर सकते हों जबकि यह ताकत तो वर्तमान में भी पूर्व मुख्यमंत्री कुमारी मायावती के पास है, रही सही कसर वर्तमान में चंद्रशेखर के चारों ओर जुटे स्वार्थी लोगों ने पूरी कर दी और उन्होंने हरियाणा में गठबंधन कर जाट पार्टी से समझोता करके बता दिया कि मैं सत्ता के लिए किसी से भी समझोता कर सकता हूं जिस कारण हरियाणा के ही देश भर के दलित पिछड़ों में संदेश गया कि भईया चंद्रशेखर भाई पर भी जल्दी से भरोसा करना ठीक नहीं है और वही हुआ जिसका डर था मैं भी दावा कर रहा था कि चंद्रशेखर हरियाणा की सियासत में तुफान मचाने पहुंच गया ऐसा तुफान मचाया कि यदि समय रहते चापलूसों को किनारे कर सिद्धांतो को नहीं अपनाया तो उत्तर प्रदेश के परिणाम और ज्यादा घातक होंगे मैं यह भी दावे के साथ कह सकता हूं चंद्रशेखर के मन में फिलहाल किसी के प्रति राग-द्वेष नहीं है लेकिन इस देश की सियासत जान चुकी है कि यदि इसे शाम दाम दण्ड भेद अपनाकर नहीं रोका गया तो यह झूठ मूठ की सियासत और गरीब प्रेम दिखाकर देश की 85% आबादी आबादी का उल्लू बनाकर सत्ता हासिल करने वालों की दुकान में सटर लगवा देगा और जिस दिन इस देश के वास्तविक मालिक के हाथ में सत्ता चली गई फिर यह सौ दौ साल वापिस नहीं आ सकेगी लेकिन वर्तमान हालात और चन्द्रशेखर आजाद की सियासत करने के तरीके पर विश्लेषण करें तो यह कहना उचित होगा कि बसपा नामक आंदोलन को कुचलने में तो दस पंद्रह साल का समय लगा भी चन्द्रशेखर आजाद नामक आंदोलन को चलने से पहले ही घेर लिया जाएगा मैं दावे के साथ कह सकता हूं इस आंदोलन को तों जहां उत्तर प्रदेश में प्रत्येक दल ने शुरू होने से पहले कुचलने का प्रयास किया वहीं देश में सफल न होने पर मीडिया द्वारा इतना चढ़ाया जा रहा है कि जिस तरह गांव में किसी को कुमर साहब राजा साहब, प्रधान जी कहकर आसमान पर चढ़ाकर बर्बाद कर दिया जाता है ठीक उसी तरह मीडिया चंद्रशेखर को दिन प्रतिदिन गलतफहमी की ओर ले जा रहा है जबकि दलित वोट चंद्रशेखर की पार्टी को बसपा से हटकर तभी मिल सकता है जब अतिपिछड़ों का वोट चंद्रशेखर आजाद की पार्टी को जाता दिखाई दे और वह चंद्रशेखर की पार्टी को तभी जा सकता है जब वह अतिपिछड़ों को जनसंख्या अनुपात में हिस्सेदारी देने का वायदा करें, फिलहाल तो यह सपा बसपा भाजपा सभी के साथ खड़ा हैं वैसे भी अतिपिछड़ों का वर्तमान में न तो कोई नेता हैं और ना ही राजनीतिक दल ऐसी स्थिति में देश का यह सर्वाधिक वोट अपनी अपनी जाति राज्य सभा विधान परिषद में जाने का प्रयास करते नेताओं के चंगुल में चला जाता है जो इन पर भरोसा नहीं करता वह हिंदूत्व के चक्कर में आधिकारों को भूलकर विभिन्न दलों की सरकार बनाने चला जाता है। मजेदार बात तो यह है कि जिस तरह से सपा बसपा भाजपा ओबीसी की दबंग जातियों को पूरे ओबीसी का हिस्सा बाट देती है उसी रास्ते पर चंद्रशेखर आजाद भी दिखाई देने लगा है हालांकि वास्तविकता तो नगीना सांसद का मन जानता होगा फिलहाल इस चर्चा से इन्कार नहीं किया जा सकता कि चन्द्रशेखर लम्बी राजनिति के रास्ते पर नहीं है हरियाणा चुनाव तो सभी ने देख लिया उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों पर चर्चा शुरू हो गई है देखते हैं सियासत कितने रंग बदलती है। फिलहाल तो यही कहा जा सकता है दलित वोट जहां बसपा के साथ खड़ा हैं वहीं अतिपिछड़ा सपा बसपा भाजपा तीनो के साथ देखा जा सकता है मुस्लिम वोट जहां सपा छोड़ने को तैयार नहीं है वही जाट यादव कुर्मी लोधी आदि ओबीसी दबंग वोट उन सभी दलों के साथ है जहां उन्हें अपने वजूद पार्टी में प्रतिष्ठा के साथ साथ अतिपिछड़ी जातियों का टिकट भी मिलें ऐसी स्थिति में कौन दल या नेता अतिपिछड़ों का हितैषी या भारत का भविष्य बन सकता है समझ से बाहर है।
विनेश ठाकुर, सम्पादक
विधान केसरी, लखनऊ