हर संपत्ति को सामुदायिक संसाधन बता कर सरकार नहीं कर सकती अधिग्रहण-सुप्रीम कोर्ट
क्या सरकार को निजी संपत्ति का अधिग्रहण कर उसका दोबारा वितरण करने का अधिकार है? सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में इसका जवाब दिया है. कोर्ट के 9 जजों की संविधान पीठ ने 8:1 के बहुमत से कहा है कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति कह कर सरकार उसका अधिग्रहण नहीं कर सकती. संपत्ति की स्थिति, सार्वजनिक हित मे उसकी जरूरत और उसकी कमी जैसे सवालों पर विचार के बाद ही कुछ मामलों में ऐसा किया जा सकता है.
यह मामला संविधान के अनुच्छेद 39(b) की व्याख्या से जुड़ा था. नीति निदेशक सिद्धांतों के तहत आने वाला यह अनुच्छेद सरकार से यह अपेक्षा करता है कि वह सामुदायिक संसाधनों का वितरण सार्वजनिक हित में करने के लिए कानून बनाएगी. विवाद इस बात को लेकर था कि क्या निजी संपत्ति को भी सामुदायिक संसाधन माना जा सकता है.
1977 के कर्नाटक बनाम रंगनाथ रेड्डी मामले में तत्कालीन जज जस्टिस वी आर कृष्णा अय्यर ने अल्पमत के फैसले में निजी संपत्ति को भी संयदायिक संसाधन कहा था. 1982 में भारत कोकिंग कोल लिमिटेड फैसले में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने जस्टिस अय्यर के फैसले से सहमति जताई थी. इस मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट कई बार विरोधाभासी मत व्यक्त करता रहा है. अब 9 जजों की बेंच ने इसे साफ कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस ऋषिकेश राय, जे बी पारडीवाला, मनोज मिश्रा, राजेश बिंदल, सतीश चंद्र शर्मा और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह ने 1977 में आए जस्टिस अय्यर के फैसले और 1982 के भारत कोकिंग कोल लिमिटेड फैसले को एक विशेष आर्थिक विचारधारा से प्रभावित बताया है. उन्होंने कहा है कि अगर संविधान के निर्माताओं की मंशा निजी संपत्ति के सार्वजनिक वितरण को पूरी तरह मान्यता देने की होती तो वह ऐसा साफ लिखते. एक खास किस्म की आर्थिक विचारधारा को संविधान निर्माताओं की मंशा से ऊपर नहीं रखा जा सकता.
7 जजों ने यह भी कहा है कि देश का आर्थिक मॉडल बदल चुका है. इस मॉडल में निजी क्षेत्र का बहुत महत्व है. सरकार को निजी संपत्तियों के अधिग्रहण का पूर्ण अधिकार देना निवेश को हतोत्साहित करेगा. बेंच की सदस्य जस्टिस बीवी नागरत्ना ने भी इस बात से सहमति जताई है कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संसाधन नही कहा जा सकता. लेकिन उन्होंने पुराने फैसलों और जजों पर टिप्पणी को सही नहीं माना है. जस्टिस सुधांशु धुलिया का मत बाकी 8 जजों से अलग रहा. उन्होंने कहा कि संपत्ति पर नियंत्रण और उसके वितरण से जुड़े कानून बनाना संसद का अधिकार है.
सुप्रीम कोर्ट ने जिस मामले पर यह फैसला दिया है, उसे 1992 में मुंबई की प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन नाम की संस्था ने दाखिल किया था. इस याचिका में महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट एक्ट, 1986 के उस प्रवधान को चुनौती दी गई थी, जिसमें सरकार को पुरानी निजी इमारतों और ज़मीनों के अधिग्रहण का अधिकार दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नीति निदेशक सिद्धांतो के आधार पर बने कानूनों को संरक्षण देने वाला संविधान का अनुच्छेद 31(c) सही है. लेकिन अनुच्छेद 39(b) को लिखते समय संविधान निर्माताओं की यह मंशा नहीं थी कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति का दर्जा दे दिया जाए.