Sonebhadra: सदर तहसीलदार के खिलाफ भ्रष्टाचार का लगा आरोप अधिवक्ताओं ने प्रदर्शन कर मंडलायुक्त को सौपा ज्ञापन।

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दिनेश पाण्डेय(ब्यूरो)

आरोप लगाया कि कार्यालय में व्याप्त अनियमितता व भ्रष्टाचार को लेकर कमिश्नर को पत्र दिया गया है।

सोनभद्र। सदर तहसील परिसर में शनिवार को दर्जनों अधिवक्ताओं ने सदर तहसीलदार के खिलाफ नारेबाजी विरोध प्रदर्शन करते हुए आयुक्त विंध्याचल को सौप पत्र जांच कर कार्रवाई करने की लगाई गुहार। विरोध प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे मनीष कुमार चतुर्वेदी, विनोद शुक्ला ने बताया कि सदर तहसील के तहसीलदार एवं उनके अधिनस्थ कार्यालय में व्याप्त अनियमितता व भ्रष्टाचार को लेकर कमिश्नर को पत्र दिया गया है।वही श्री शुक्ल ने बताया  कि तहसीलदार रावर्ट्सगंज, जिला-सोनभद्र के सह पर उनके अधिनस्थ कार्यालयों में घोर अनियमितता व भ्रष्टाचार व्याप्त है, जिसके कारण न केवल आम जनमानस को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है अपितु आम जनमानस में सरकार व प्रशासन द्वारा उनके संवैधानिक व कानूनी ढाचे की घोर क्षति करने का संदेश जा रहा है।
इस संबंध में हम प्रार्थीगण श्रीमान् जी का ध्यान निम्न विन्दुओं पर आकृष्ट कराना चाहते है-
1- तहसीलदार के न्यायालय में वादो के निस्तारण में उभय पक्षो की बहस सुनने के बाद जब तक आदेश पारित नही किया जाता तब तक किसी पक्षकार द्वारा संबंधित अधिकारी अथवा पेशकार को मुह मांगा धन प्रदान नही कर दिया जाता। यही नही किसी-किसी मामले में उभय पक्षो से बोली लगवाकर सबसे अधिक धन देने वाले के पक्ष में आदेश पारित कर दिया जाता है। जिसकी बानगी कई फाइलों में जाँच कर देखी जा सकती है।दानपत्र अथवा बैनामा के आधार पर दाखिल खारिज के मामलों में तो तहसीलदार कार्यालय द्वारा सबरजिस्टार कार्यालय से प्राप्त अभिलेखो का मुकदमा दर्ज कर इश्तेहार तब तक जारी नहीं किया जाता जब तक संबंधित पक्षकार स्वयं अथवा अधिवक्ता के माध्यम से कार्यालय में जाकर 500 से 1000 रुपये संबंधित बाबू को न दे दें, इसके बाद आदेश के नाम पर साधारण पत्रावली में भी 10000 से 20000 रुपये तक की मांग की जाती है कहने पर वी०आई०पी० खर्च की दुहाई दी जाती है। भवन मानचित जो कि मास्टर प्लान द्वारा स्वीकृत किये जाने से पूर्व तहसील से अनापत्ति प्रमाण पत्र लिया जाता है। वह भी तब तक नहीं दिया जाता जब तक आवेदक तहसीलदार कार्यालय में आकर अवैधानिक धन नही दे देता तथा प्रकीर्ण पत्रावली में प्रति पत्रावली 2000 से 5000 रुपये तक व्यक्तिगत रुप से तहसीलदार सदर द्वारा लिया जाता है तब आख्या प्रेषित की जाती है। यह कि अविवादित पत्रावली में आदेश दर्ज करने में अनावश्यक विलम्ब तहसीलदार के कहने पर किया जाता है तथा जानबुझकर कुछ पत्रावली अपने न्यायालय में रखी जाती है जिसे ज्याद से ज्यादा वसूली की जा सके। मामले की शिकायत पर तहसीलदार द्वारा पेशकार पर पूरा टीकडा फोड़ते है तथा अनभिज्ञ बनते है। धारा 80 रा०सं० के मामले में तहसीलदार महोदय प्रति फाइल 2000 रुपये जबरियों चार्ज लगाते है न देने पर पत्रावली खारिज करवाने की धमकी देते है तथा बिना सूचना के पत्रावली खारिज करवा देते है जिसमे पूर्ण रुप से तहसीलदार जिम्मेदार है।यह कि पैमाईश फाट संबंधित मामले की कोई मानिटरिंग तक नही करते है तथा बहुतायत मामले लम्बित है। वे उसी मामले में जाते है जिसमे 25000 रुपया कम से कम मिलता है। विवादित पत्रावलियों में तहसीलदार की मांग नाजायज है। तथा 50000 रुपये से 500000 रुपये तक की मांग करते है तथा पैसा प्राप्त होने पर भी आदेश करने में विलम्ब करते है, जो तमाम पक्षकारों का कहना है।
मौके पर सोनभद्र बार एसोसिएशन के महामंत्री राजीव सिंह, ओमप्रकाश पाठक, विनोद शुक्ल, मनीष कुमार चतुर्वेदी,योगेश द्विवेदी,राजेंद्र पाठक, तापेश्वर मिश्र,पंकज सिंह,अखिलेश पाण्डेय, पंकज सिंह यादव मौजूद रहे।