जाति है कि जाति नहीं

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-धार्मिक व गैर जरूरी वजट में कटौती कर मात्र पन्द्रह सौ करोड देश के सभी लोगों में पांच-पांच करोड़ बांटकर भगवान स्वरूप बने प्रधानमंत्री।

-एक सड़क की लागत काटकर भी आ जाएगी देश में खुशहाली।

-फिर चाहे महंगाई हो या निजिकरण किसी पर नहीं पड़ेगा फर्क।

देश के बुद्धिजीवी और सरकार में बैठे लोग अथवा लोगों को हिंदूत्व का सर्टिफिकेट बांटते ठेकेदार भले ही जातिवाद मिटाने या भेदभाव दूर करने की कितनी भी शपथ लेते रहे या छुआछूत से दो चार होते रहे लेकिन वर्तमान हालात और बीते सालों पर नजर डालें तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं लाख दावों के बावजूद न तो जातिवाद खत्म हो पाया है और ना ही खत्म होने की सम्भावना है इसके साथ भले ही दलित अतिपिछड़ों को किसी बड़े पद पर बैठा दिया जाए लेकिन उनकी जातियों के प्रचार होने से कोई भी दावे के साथ कह सकता है कि न तो कभी जातिवाद कम हुआ है और ना ही खत्म होने वाला है हां मेरा यह सुझाव सोलह आने सच है कि हमारे जिंदादिल और छप्पन इंच के सीना धारक प्रधानमंत्री यदि मात्र एक सड़क या एक धार्मिक आयोजन का वजट कम कर देश अमीर गरीब सभी में बांट दें तो डेढ़ सो करोड़ की आबादी पांच-पांच करोड़ मिलते ही सिर के बल खड़ी हो जाएगी और आजीवन प्रधानमंत्री का फोटो घर में लगाकर भगवान स्वरूप मानकर पूजा करने में संकोच नहीं करेगी , वरना देश में मजबूती की ओर बढ़ रही जातिवादी व्यवस्था व कटुता राजनीति के हाथ में खेलकर समाज में जहर घोलती रहेंगी।

जातिवाद पर आप स्वयं देख ले चाहे मीडिया द्वारा किसी भी वीआईपी की जाति बताने की बात हो या सरकार द्वारा एक नहीं सैकड़ों मौको पर राष्ट्रपति सहित उच्च न्यायालय में जजों की जाति यहां तक कि चुनाव शुरू होते ही नेताओं द्वारा स्वयं की जाति बताने वालों से मैं पूछना चाहता हूं कि भाई यह सब तो कुछ लोगों को पता था जिन्हें नहीं पता था उन्हें भी देर से ही सही पता चल जाता लेकिन आप लोगों ने तो वर्तमान राष्ट्रपति की नियुक्ति के समय उनकी भी जात बताकर प्रमाण दे डाला था कि हम लोग भले जातिवाद खत्म करने के कितने भी दावे कर लें लेकिन सरकारी नौकरी हो या लैटरल एंट्री में आईएएस बनाना मंत्री मंडल में शामिल करने का समय हो या उनमें विभागों का वितरण, सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति हो या जिलों के डीएम एसपी की तैनाती थानों की जिम्मेदारी हो या शासन के प्रमुख सचिव, केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में वीसी की जिम्मेदारी और राजनीतिक दलों की टिकट वितरण व्यवस्था ,जहां देखोगे खुल्लम खुल्ला जातिवाद नज़र आएगा जिसमें शायद किसी को कोई आपत्ती नही है क्योंकि बिना जातिवाद कर देश के सर्वाधिक वोट रखने वाले दलित अतिपिछड़ों पिछड़ों और मुस्लिमो को सत्ता से दूर नहीं रखा जा सकता ,हालांकि मैं जातिवाद का घोर समर्थक बन गया हूं क्योंकि अपने देश के अतिपिछड़ों से हमेशा धोखाधड़ी होती रही है जो आज भी जारी है आज बड़े बड़े विद्वान देश से जातिवाद खत्म कर सनातन की रक्षा करने का दावा करते हैं लेकिन उनके मुंह से एक बार यह शब्द नहीं फूटते की देश में दलित पिछड़ों खासकर अतिपिछड़ों के अधिकारों का हनन क्यों किया जा रहा है। क्यों एक भी यूनिवर्सिटी या लैटरल एंट्री से ज्वाइंट सेक्रेटरी बनाएं गए 400 लोगों में एक भी दलित अतिपिछड़ा नहीं है क्यों अधिकांश सरकारी विभागों का निजीकरण कर आरक्षण पर कुठाराघात किया जा रहा है जरा बताओ तो सही देश की सबसे बड़ी अदालत में कितने जज दलित पिछड़े वर्ग से आते हैं ,जरा हिंदूत्व के ठेकेदार देश को यह भी बता दें कि केंद्र व राज्य सरकारों के कैबिनेट मंत्रियों में कितने लोग अतिपिछड़ी जातियों से बनाएं गए हैं मैं दावे के साथ कह सकता हूं मेरे सवालों का जबाब किसी के पास नहीं है।

हां यह सोलह आने सही है जातिगत भेदभाव रखना दस प्रतिशत लोगों की मजबूरी है उन्हें पता है कि यदि दलित अतिपिछड़े पिछड़े को वर्ण-व्यवस्था के अनुसार सच्चाई समझ में आ गई तो ये अपने सर्वाधिक वोट के सहारे सत्ता छीनकर वापिस नहीं करेंगे इस लिए भले ही राममंदिर निर्माण ,या कुम्भ के आयोजन और अन्य व्यवस्थाओं पर लाखों करोड़ रुपए खर्च कर दिए जाएं लेकिन गरीबों को सरकारी राशन और संविदा तक ही सीमित रखना है ताकि ईश्वर के यहां से आई महंगाई के चलते गरीब की छोड़िए मध्यम दर्जे का व्यक्ति भी दो वक्त की रोटी खाकर अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में न पढ़ा सकें क्योंकि देश की नव्वे प्रतिशत आबादी के बच्चे यदि एजुकेटेड हो गये तो धार्मिक धारा में बहकर वोट नहीं करेंगे बल्कि योग्यता के आधार पर सरकार बना डालेंगे और हलक में हाथ डालकर सवाल करेंगे कि प्रत्येक सरकारी संस्था या व्यवस्था में दलित अतिपिछड़ों से भेदभाव क्यों किया जा रहा है

हालांकि मैं जाति बताने वालों का प्रत्येक स्तर पर समर्थक रहा हूं और भविष्य में रहना भी चाहता हूं क्योंकि जाति ही तो है जो हमें जोड़कर रखती हैं लेकिन यह सब एक बार बताने की आवश्यकता थी न कि हर मौके पर राष्ट्रपति जैसे पद को जाति के तराजू में तौला जाता। मैं भाजपा द्वारा चुनी गई राष्ट्रपति पर गर्व करते हुए कह सकता हूं कि भाजपा का यह निर्णय काबिले तारीफ है जिसकी जितनी प्रशंसा की जाएं कम है आप लोगों ने पहले रामनाथ कोविंद जी को सर्वोच्च कुर्सी दी और अब एक महिला को इस कुर्सी पर सुशोभित किया, लेकिन ये क्या, हर किसी दल में उनकी जाति बताने की होड़ मच गई।कुल मिलाकर श्री मति द्रोपदी मूर्मू को जाति से नहीं तोलना चाहिए, लेकिन नवनिर्वाचित राष्ट्रपति की जाति बताने का पहला मामला नहीं है इससे पहले भी जब जब मौका मिला भाजपा ने उनकी जाति बताकर पद पर बैठाया। कई बार तो ऐसा मजाक भी हुआ जब भाजपा के बड़े नेता दलितों के घर खाना खाकर गए और फोटो शोसल मीडिया पर भी वायरल करके कहा कि हमने आज अमुक गांव में फला दलित के घर खाना खाया।

मैं ऐसे लोगों से भी पूछना चाहता हूं कि क्या दलित इस लायक नहीं थे कि आप उनके घर का बना खा सकें और थे तो फिर प्रचार करने की नोटकी क्यों की गई। मैं अनुरोध करना चाहूंगा वर्तमान में सत्ता चला रही भाजपा के नेतृत्व से कि यदि सहानूभूति ही दिखानी है तो लैटरल एंट्री के माध्यम से बनाएं गए डायरेक्टर, ज्वाइंट सेक्रेटरी में दिखाएं, यदि सहानूभूति ही दिखानी है तो अपने मंत्रियों की कैबिनेट में जनसंख्या के हिसाब से मंत्री बनाए, यदि सहानूभूति ही दिखानी है देश भर में जहां जहां आपकी सरकार है वहां के मुख्यमंत्री राज्यपाल में दिखाएं, यदि सहानूभूति ही दिखानी है तो महापुरुषों को सम्मान देकर व उनके नाम पर स्कूल, कालेज, मेडिकल कॉलेज, एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन,व सरकारी योजनाओं का नामकरण करके दिखाऐ, यदि सहानूभूति ही दिखानी है तो आने वाले आगामी विधानसभा व लोकसभा चुनाव में जनसंख्या या मतदाता संख्या के अनुपात में टिकट देकर दिखाएं, यदि सहानूभूति ही दिखानी है तो सैंट्रल यूनिवर्सिटी को एक संस्था मानकर आरक्षण पूरा करके दिखाऐ, और यदि और ज्यादा सहानूभूति दिखानी है तो गांव गरीब के लिए चलाए गए प्रार्थमिक विद्यालयों में शिक्षा का स्तर सीबीएसई जैसा करके दिखाऐ ताकि देश की अस्सी प्रतिशत आबादी के गरीब छात्र छात्राओं को मेरिट के समय अपनी गरीबी पर निराश न होना पड़े। क्या क्या बताएं हर तरफ सहानूभूति की आवश्यकता है मैं मानता हूं कि आपने बहुत काम किए होंगे देश को एक नही दो दो राष्ट्रपति देना आपके प्यार का प्रमाण है जिसे मानने से इंकार नहीं किया जा सकता, इसके बावजूद मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि आपने दुनिया में देश की साख बनाने के साथ साथ गरीबों में भी अपनी साख बना ली तो आपको शायद अगले पन्द्रह साल में भी कोई हटाने वाला नहीं मिलेगा। लेकिन देश के अतिपिछड़े आपकी ही नहीं सभी सरकार चला चुके या चलाने का सपना देख रहे दलों का असली चेहरा पहचान चुकें हैं इसीलिए अतिपिछड़ों में सत्ता कब्जाने की होड़ लगनी शुरू हो गई है।

मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि अपना देश खुशहाल देशों की श्रेणी में नम्बर वन पर गिना जाएगा हालांकि अपने देश को अपने देश वासी आज भी खुशहाल मानते हैं लेकिन इमानदारी से नहीं कुछ आपके डर से तो कुछ इडी सीबीआई के छापों से तो कुछ आपकी आईटी सैल पर सामाजिक वैमनस्यता बांट रहे आई टी सैल वालों की गालीयो के डर से, सत्यता आप तक नहीं पहुंच पाती क्योंकि आप लोग निष्पक्ष होकर सरकार चलाने के पक्षधर रहे हैं लेकिन अधिकारी मनमानी में मस्त हैं। कांवर में फूल बरसाना हमारे धर्म को मजबूत करना है जिसका मैं प्रबल समर्थक हूं यदि ग्रामीण शिक्षा में भी कुछ इसी तरह प्रेरित किया जाए तो समाज व देश को और ज्यादा मजबूती मिलेगी कानून का ज्ञान होने के कारण झगड़े फसाद लगभग समाप्त हो चुकें हैं कहीं छुटपुट घटनाएं होती हैं तो नेताओं का हाथ होता है इस लिए प्रधानमंत्री जी भारत के लोग आपकों आजादी के बाद से अब तक का सबसे योग्य प्रधानमंत्री मानते हैं आपकी भी जिम्मेदारी बनती है कि आप इन डेढ़ सौ करोड़ भारतवासियों की नजरों में खरे उतरकर दिखाओ।कम से कम जातें जातें तो आप देश के गरीबों के मसीहा बन ही सकते हैं एक बार छप्पन इंच का सीना कर कुम्भ सहित जनता को सीधा लाभ न देने वाले कार्यों के वजट को आधा कर सीधे डेढ़ सो करोड़ गरीब अमीर सभी में पांच-पांच करोड़ बंटवा दो मैं दावे के साथ कह सकता हूं भारत के भगवान बनते देर नहीं लगेगी सभी देशवासी आजीवन आपकी फोटो लगाकर भगवान के साथ साथ आपकी भी पूजा किया करेंगे ,लेकिन मुझे पता है अपने देश की हीनता वादी व्यवस्था आपको ऐसा नहीं करने देगी। इस सम्पादकीय को जों पढ़ेगा उनमें गाली देने वाले कम और प्यार करने वाले ज्यादा होंगे।आज के सोशल मीडिया युग में यदि यह लेख आपके पास तक पहुंच सका तो मुझे उम्मीद ही नहीं विश्वास भी है कि आप मुझ पर सरकारी हथियारों का इस्तेमाल न कर मेरे लिखे पर विचार करेंगे।

विनेश ठाकुर ,सम्पादक
विधान केसरी ,लखनऊ

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