गजरौला: सम्पूर्ण सृष्टि के रचनाकार भगवान श्री दक्ष प्रजापति डॉ. उत्तम सिंह प्रजापति

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गजरौला। आज सृष्टि के प्रथम राजा भगवान श्री दक्ष प्रजापति की जयंती राष्ट्रीय प्रजापति महासभा के बैनर तले मौहल्ला मायापुरी में मुकेश प्रजापति के आवास पर भव्य रूप में मनाई गई। मुख्यातिथि मुख्यवक्ता राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ उत्तम सिंह प्रजापति ने कार्यक्रम का सुभारम्भ श्रृष्टि के प्रथम राजा भगवान श्री दक्ष प्रजापति के चित्र पर पुष्प माला अर्पित एवं दीप प्रज्वलित करके किया।सम्बोधित करते हुए कहा कि अषाढ माह की पूर्णिमा को यह तिथि गुरु पूर्णिमा के रूप में भी मनाई जाती है। इसके बाद श्रावण माह की शुरुआत होती है, जिसे भगवान शिव का माह कहा जाता है। वैसे तो देवताओं का गुरु बृहस्पति को कहा गया है। मगर इस दिन दक्ष प्रजापति की जयंती मनाए जाने का भी विशेष महत्व है।

कहा जाता है कि सारे देवता उनसे वेदों का ज्ञान लेते थे। इसलिए उनकी जयंती गुरु पूर्णिमा के रूप में भी मनाई जाती है। देवतागण और ऋषि-मुनि उनकी स्तुति करते थे, दुनिया के प्रथम पत्रकार कहे जाने वाले नारद मुनि महाराज दक्ष प्रजापति के अनुज भ्राता थे।

चारों वेदों के ज्ञाता महाराज दक्ष प्रजापति शिवजी के ससुर थे। वे ब्रहमा जी के मानस पुत्र भी कहे जाते हैं। ब्रहमा जी ने उनको सृष्टि को आगे बढाने की जिम्मेदारी दी। उनकी पत्नी का नाम प्रसूति था। उनकी सौलह क्न्याएं हुईं, जिनमें से एक सती भी थी। अन्य स्वाहा, सुधा, श्रद्धा, मैत्री, दया, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति, बुद्धि, मेधा, तितिक्षा, द्वी और मूर्ति। सती ने दक्ष प्रजापति की मर्जी के विरुद्ध शिवजी से विवाह किया था।
कहा जाता है कि धरती पर जितने मानव हैं वे सभी दक्ष प्रजापति की कन्याओं की ही संतान हैं।

महाराज दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें उन्होंने अपने जामाता भगवान शंकर और अपनी पुत्री सती को निमन्त्रित नहीं किया। शंकर जी के समझाने के बाद भी सती अपने पिता के उस यज्ञ में बिना बुलाये ही चली गईं। यज्ञस्थल में दक्ष प्रजापति ने सती और शंकर जी का घोर निरादर किया। अपमान न सह पाने के कारण सती ने तत्काल यज्ञस्थल में ही योगाग्नि से स्वयं को भस्म कर दिया। सती की मृत्यु का समाचार पाकर भगवान शंकर ने वीरभद्र के द्वारा उस यज्ञ का विध्वंश करा दिया। वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति का सिर भी काट डाला। बाद में ब्रह्मा जी की प्रार्थना करने पर भगवान शंकर ने दक्ष प्रजापति को उसके सिर के बदले में बकरे का सिर प्रदान कर उसके यज्ञ को सम्पन्न करवाया।

इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव ने तांडव नृत्य किया। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देख कर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा सती के शरीर के टुकड़े करने शुरू कर दिए।

शक्तिपीठ

सती के शरीर का जो हिस्सा और धारण किए आभूषण जहां-जहां गिरे वहां-वहां शक्ति पीठ अस्तित्व में आ गए। देवी भागवत में 108 शक्तिपीठों का जिक्र है, तो देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र मिलता है। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों की चर्चा की गई है। वर्तमान में भी 51 शक्तिपीठ ही पाए जाते हैं, लेकिन कुछ शक्तिपीठों का पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में होने के कारण उनका अस्तित्व खतरें में है।

राजा दक्ष प्रजापति की राजधानी

हिमालय की तलहटी में हुआ करती थी। यह स्थान वर्तमान में भारत के उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार जनपद में है, जो अब कनखल के नाम से जाना जाता है। कनखल में महाराज दक्ष प्रजापति का मंदिर भी है। इस अवसर पर मण्डल अध्यक्ष भाजपा,राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ उत्तम सिंह प्रजापति राष्ट्रीय अध्यक्ष युवा दिनेश कुमार प्रजापति लोकसभा संयोजक प्रदेश महामंत्री महेंद्र सिंह प्रजापति प्रदेश उपाध्यक्ष महिला मोर्चा कुसुम प्रजापति क्षेत्रीय मंत्री इंजीनियर जोगिंदर सिंह प्रजापति पूर्व क्षेत्रीय उपाध्यक्ष रजनीश कुमार प्रजापति नगर अध्यक्ष उमेश कुमार प्रजापति जिला उपाध्यक्ष सुरेश कुमार प्रजापति डॉ चमन सिंह प्रजापति डॉ. रवि कुमार,सभासद काविन्दर सिंह पूर्व सभासद विजय कुमार प्रजापति,मुकेश कुमार प्रजापति योगेश कुमार तरुण कुमार रोहित प्रजापति प्रदीप प्रजापति कान सिंह सोमनाथ अनिल प्रजापति सीटू प्रजापति कौशल प्रजापति रामवीर सिंह तनुज जबर सिंह हिमांशु एवं लकी प्रजापतिआदि उपस्थित रहे।