सरकार ध्यान दें तो रोल मॉडल बनें एसडीएम का प्लान
यू तो उत्तर प्रदेश क्या देश भर में प्रत्येक वर्ष जल संरक्षण व पर्यावरण के लिए वृहद स्तर पर वृक्षारोपण किया जाता है। प्रत्येक वर्ष करोड़ों पेड़ लगाकर पर्यावरण सुरक्षित रखने का दावा किया जाता रहा है लेकिन दूसरा साल आते आते बीते साल लगाए गए पेड़ कहां तक पहुंच सके हैं मरे या जिंदा है इस पर शायद ही कोई बड़ा अथवा छोटा अधिकारी ध्यान दें पाता हों। लेकिन इस मुहिम को अपनी कार्यशैली में जिला बिजनौर की तहसील चांदपुर के एसडीएम मांगेराम चैहान ने शामिल किया है लेकिन चैंकाने वाली बात यह है कि इनके द्वारा पर्यावरण की सुरक्षा को बनाएं गए इस प्लान पर सरकार कोई ठोस निति नहीं बना सकी। पूरी जानकारी करने के बाद मैं भी दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि सरकार व उसके अधिकारी एसडीएम मांगेराम चैहान की इस योजना पर काम करें तो यह बिना किसी सरकारी या निजी खर्च के समूचे देश में रोल माडल बनकर मनुष्य के जीवन में वरदान साबित हो सकती है।
जहां तक मेरी जानकारी में आया है तो श्री चैहान ने अपनी अभी तक की तैनाती में अपने विवेक से काफी हद तक काम किया है जिसमें अपनी कोर्ट से न सिर्फ जमानत पाने वालों व जमानत लेने वालों को कम से कम पाच पेड़ लगाने को प्रेरित किया बल्कि ग्राम प्रधानों, राशन डीलरो क्षेत्र पंचायत सदस्यों, सरकारी व गैरसरकारी शिक्षण संस्थानों को इस मुहिम से जोड़ने का काम किया। और खुले शब्दों कहा कि प्रत्येक व्यक्ति स्वेच्छा से पांच पेड़ लगाकर आएगा तभी शांति भंग या जमीन से सम्बंधित मामले में जमानत पाने का हकदार होगा। ऐसा नहीं कि एसडीएम ने किसी को जमानत नहीं दी हों लेकिन इस बहाने उसे पेड़ लगाने को प्रेरित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इतना ही नहीं जानकार यदि सही बताते हैं तो उक्त एसडीएम ने बिना किसी सरकारी बजट के दिवानी के मुकदमों का बोझ भी कम करके फौजदारी तक के मुकदमों में कमी लाने का खाका खींच डाला। लेकिन बिना बजट के पर्यावरण सुरक्षा मुकदमों के बोझ को कम करने लिए सरकार कोई कदम नहीं उठा सकी। यदि हम इस मुहिम से पर्यावरण सुरक्षा, जलसंरक्षण ,मुकदमों व मुकदमों का बोझ कम करने की बात करें तो जहां प्रत्येक वर्ष होने वाले वृक्षारोपण कार्य पर सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च की बचत होगी वहीं गांव में पांच पेड़ लगाने वाला व्यक्ति खुदको गौरवान्वित महसूस कर उनकी देखभाल और परवरिश करेगा। जब पर्यावरण सुरक्षा पर मजबूती से काम होगा तो जलसंरक्षण की देखभाल भी जिम्मेदारी के साथ हो सकेगी, क्योंकि वृक्षों की परवरिश व जलसंरक्षण की मानिट्रिंग भी वृक्ष लगाने वाले के साथ साथ ग्राम प्रधान सहित गांव के जिम्मेदार व्यक्ति के हाथ में होगी।
वही मुकदमों के बोझ से मुक्ति की बात करें तो एसडीएम ने जहां गांव प्रधान सहित जिम्मेदार ग्रामवासियों को जमीन से सम्बंधित विवाद निपटाने का खाका तैयार किया है तो जमीनी झगड़े कम होने पर फौजदारी के मुकदमे खुद ही कम हो जाएंगे और गांव वालों को अपने छोटे छोटे काम के लिए तहसील जिले या राज्य मुख्यालय के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। लेकिन एसडीएम द्वारा तैयार की इस योजना से नुकसान भी हजारों लोगों को ही नहीं यदि प्रदेश की बात करें तो लाखों लोगों को उठाना पड़ेगा क्योंकि यह योजना यदि सरकार ने गलती से स्वीकार कर ली तो बड़े पैमाने की रिश्वतखोरी का दम निकल जाएगा और वकीलों की आमदनी में भी बड़े पैमाने की कमी आएगी हालांकि ऐसा नहीं कि सभी अधिकारी कर्मचारी व वकील खराब हो देश व जनहित में सोचने वालों की खुशी तो कोई रोक नहीं सकता साथ साथ आम आदमी को कितनी खुशी मिलेगी शब्दों में बयां नहीं की जा सकती।अब देखना यह है कि सरकार इस योजना को रोलमॉडल के रूप में स्वीकार करके कोई राज्यस्तरीय योजना लागू करती हैं या रिश्वतखोरी में माहिर कर्मचारियों अधिकारियों का ध्यान रखकर ठंडे बस्ते में डालती है।
विनेश ठाकुर, सम्पादक
विधान केसरी ,लखनऊ