सिंगाही खीरी: क्या हरियाली को खत्म करके ही लकड़कट्टे दम लेंगे प्रशासन मौन?
विधान केसरी समाचार
सिंगाही खीरी। तिकुनियां बॉर्डर क्षेत्र के गाँवों में हरियाली मिटाने का अभियान दिनबदिन जोर पकड़ता ही जा रहा है जब हरियाली बचाने वाले ही अपना ईमान बेचकर कर लकडकट्टो से साठ गांठ कर अपनी जेब भरेंगे तो फिर किसके दम पर क्षेत्र की हरियाली बचेगी यह तो विचारणीय प्रश्न है?
उत्तर निघासन बेलरायां रेंज क्षेत्र में आये दिन हरे भरे पेड़ों के कटान को लेकर सुर्खियों में बना रहता है। सरकार भले ही पेड़ लगाओ जीवन बचाओ अभियान को लेकर समय-समय पर ग्रमीण इलाकों में वृक्षारोपण पर करोड़ों का बजट खर्च कर हरियाली को बढ़ाने का दावा पेश कर रही हो पर यहां पर जमीनी हकीकत तो कुछ और ही बयाँ कर रही है। यहां बैठे भेड़ियों ने तो शायद क्षेत्र की हरियाली के समूल नाश की कसम सी खा रक्खी हो। अगर बात करें विभागीय जिम्मदारों की तो शायद उन्हें तो गुलाबी चश्मे से अति प्रेम होने के कारण कुछ दिखाई और सुनाई ही नही देता वो चाहें सरकार की नीतियों की बात हो या फिर क्षेत्र के भविष्य की उन्हें कोई फर्क नही पड़ता शायद उनका एक ही उद्देश्य है कि उनके ऊपर से गुलाबी चश्मा ना उतरने पाये। यह भ्रष्ट लोग सरकार की नीतियों को धूल चटाने और अपनी जेबें भरने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। अभी कुछ ही माह पूर्व आक्सीजन की त्रासदी से भले ही पूरा देश गुजरा हो पर यह जिम्मेदार गुलाबी गैंग के आगे पूर्णतः नतमस्तक हो चुके हैं।
परमिशन के नाम पर मोटा खेल
तिकुनियां कोतवाली क्षेत्र में अभी दो दिन पूर्व ही एक हरी भरी फलदार आम की बाग का कटान हुआ वहीं सूत्र बताते हैं कि 20 सूखे पेड़ो का परमिट विभाग द्वारा जारी किया गया था और लकड़ी माफियाओं ने 42 हरे फलदार पेड़ो को काटकर इलाके के एक भट्ठे पर लकड़ी का स्टॉक लगा रखा है।
धड़ल्ले से प्रतिबंधित लकड़ियों का हो रहा कारोबार
वन विभाग के करीबी सूत्र बताते है कि बेलरायां व तिकुनियां क्षेत्र में फर्नीचर की दुकानों पर साल में एक बार एक लाट का परमिट बनवाकर पूरे साल उसी परमिट पर सीसम, आम, सागौन, साखू आदि बेशकीमती व प्रतिबंधित लकड़ियों का भी कारोबार चरम पर है, विभाग के ही कुछ जिम्मदारों के संरक्षण पर ही यह कारोबार फल फूल रहा है। यह भी चर्चा है कि इस कारोबार को कराने के बदले विभागीय जिम्मेदार एक मोटी रकम इन कारोबारियों से वसूलते हैं कुछ का तो यहाँ तक कहना है कि कुछ विभागीय लोग इन बड़ी दुकानों पर बैठ कर उन्हें शक्ति प्रदान करने का भी काम करते हैं तथा ब्यापार में साझेदारी की भी बात बनी चर्चा का विषय । बेलरायां रेंजर से इस मामले को लेकर बात करना चाहे। तो उन्होंने फोन उठाना मुनासिब नहीं समझा। अधिकारियों ने आखिर क्या कारण है फोन उठाने से क्यों कतरा रहे हैं। कोई बड़ा खेला तो नहीं है?