बांदाः डिप्थीरिया मामले में स्वास्थ्य महकमा अलर्ट

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बांदा। डिप्थीरिया (गलघोंटू) के संदिग्ध रोगी को लेकर स्वास्थ्य महकमा अलर्ट मोड पर आ गया है। प्रभावित गांवों में रैपिड रिस्पांस टीम (आरआरटी) व मोबाइल टीम के जरिए संदिग्ध बच्चों के सैंपल लेकर जांच को लखनऊ भेजे जा रहा है। अब तक 37 बच्चों के सैंपल जांच को भेजे गए हैं। इनमें 6 पाजिटिव हैं। आशा व एएनएम के जरिए टीकाकरण से छूटे बच्चों को चिन्हित कर टीकाकरण किया जा रहा है। जिला अस्पताल में 20 बेड का आइसोलेशन वार्ड बनाया गया है। 1868 बच्चों को डीपीटी व टीडी का टीका भी लगाया गया है।
जनपद में डिप्थीरिया (गलाघोटू) से ग्रसित मरीजों की मौत के बाद स्वास्थ्य महकमे में खलबली मची है। टीमों को अलर्ट करते हुए अभियान चलाकर मरीजों का टीके लगाने, जांच कराने और दवा उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. एके श्रीवास्तव ने बताया कि बड़ोखर ब्लाक के पचनेही, बक्क्षा, त्रिवेणी और बबेरू ब्लाक के पून गांव में आरआरटी व मोबाइल टीमें लगाई गई हैं। आशा व एएनएम बच्चों को चिन्हित कर नियमिति टीकाकरण से छूटे बच्चों को डीपीटी व टीडी का टीका लगा रही हैं। इन गांवों में 1868 बच्चों को टीके लगाए गए हैं। इनमें शून्य से 7 साल तक के 732 बच्चों को डीपीटी और 7 से 15 साल तक के 1136 बच्चों को टीडी का टीका लगाया गया है।

सीएमओ ने बताया कि लक्षणयुक्त बच्चों के इलाज के लिए जिला अस्पताल में 20 बेड का डिप्थीरिया आइसोलेशनवार्ड बनाया गया है। यहां बच्चे को भर्ती कर इलाज किया जा रहा है। जांच के लिए सैंपल केजीएमयू, लखनऊ भेजा रहा है। अब तक 37 बच्चों के नमूने जांच को भेजे गए हैं। इनमें 6 पाजिटिव मिले हैं।

क्या है डिप्थीरिया

जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डा. संजय कुमार शैवाल ने बताते हैं कि यह बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है। इसमें गला सूखने लगता है, आवाज फटने लगती है, गले में जाल पडऩे के बाद सांस लेने में दिक्कत, पीड़ित के गले में दर्द, तेज बुखार और मुंह में सफेद झिल्ली बन जाती है। समय से इलाज न कराने पर शरीर के अन्य अंगों में संक्रमण फैल जाता है। यदि इसके जीवाणु हृदय तक पहुंच जाएं तो जान भी जा सकती है। डिप्थीरिया से संक्रमित बच्चे के संपर्क में आने पर अन्य बच्चों को भी इस बीमारी के होने का खतरा रहता है।

ऐसे करें बचाव

टीकाकरण से बच्चे को डिप्थीरिया बीमारी से बचाया जा सकता है। एपिडेमोलॉजिसट डा. प्रसून खरे ने बताया कि नियमित टीकाकरण में पेंटावेलेंट्स के संयुक्त टीके में डीपीटी का टीका लगाया जाता हैं। बच्चे को जन्म से 6वें सप्ताह में पहला, 10वें में दूसरा और 14वें सप्ताह में तीसरा टीका लगाया जाता है। इसके बाद 16 से 24 माह पर डीपीटी का पहला बूस्टर और 5 साल में दूसरा बूस्टर लगाया जाता है। इसके अलावा गंभीर परिस्थिति में बच्चे को एंटी-टोक्सिन भी दिया जाता है, इससे टीकाकरण के बाद डिप्थीरिया की संभावना कम रहती है।