वाराणसी: दास्तान-ए-मुलायमः मन में बसता था बनारस, जेल में रखी सपा की नींव, 14 साल की उम्र में शुरू किया राजनीतिक सफर

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वाराणसी। सितंबर 1992 में रामकोला कांड (देवरिया) के बाद मुलायम सिंह यादव ने तब की कल्याण सिंह सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। मुलायम सिंह यादव को देवरिया से गिरफ्तार किया गया। इसके बाद उन्हें बनारस के शिवपुर स्थित सेंट्रल जेल लाया गया। कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव ने जेल में ही समाजवादी पार्टी के गठन की योजना को अंतिम रूप दिया था।

दरअसल, मुलायम सिंह यादव के मन में बनारस के प्रति शुरू से ही बहुत प्रेम था। मात्र 14 साल की उम्र में राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले मुलायम सिंह जब कुछ नहीं थे तब भी बनारस उनके हृदय में था। जब बहुत कुछ हो गए तो बनारस के लिए बहुत कुछ किया। कार्यकर्ताओं के प्रति उनके व्यवहार का कोई जवाब नहीं था। वह सभी को अपना हिस्सा मानते थे।

प्रख्यात समाजवादी चिंतक विजयनारायण बताते हैं कि जब मुलायम सिंह गर्दिश के दिनों में थे तो अंजनि कुमार राय, दुर्गा प्रासाद श्रीवास्तव और चंद्रभूषण गिरी उनके बेहद खास रहे। अलखनाथ यादव, लोकनाथ सिंह एडवोकेट, सत्यप्रकाश सोनकर, चंद्रशेखर राय के नाम भी उनके बेहद करीबियों में रहे हैं। जब मुलायम सिंह यादव के दिन फिरे तो वह बनारस का हर काम अपने इन्हीं विश्वासपात्रों और निकटस्थ सहयोगियों के परामर्श से करते रहे। वह पुराने कार्यकर्ताओं को व्यक्तिगत रूप से जानते और पहचाने थे।

दूर से देख कर भी पहचान लेते थे। पास बुला कर हालचाल पूछा करते थे। कार्यकर्ताओं को किसी प्रकार का संकट आने पर, उनकी व्यक्तिगत समस्या में भी हर तरह से मदद करते थे। वह प्रभुनारायण सिंह का बहुत सम्मान देते थे। उनकी कही बात कभी नहीं काटी।

बनारस के पुरनिए बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव का निधन राजनीति के एक स्वर्णिम अध्याय समाप्त हो जाने जैसा है। 1953 में चैदह साल की उम्र में डॉ. राममनोहिया द्वारा चलाए गए नहर रेट आंदोलन में उन्होंने पहली बार सक्रिय राजनीति में कदम रखा। उसी दौरान वह लोहिया के करीब आए। उसके बाद सोशलिस्ट पार्टी में बतौर कार्यकर्ता लंबे समय तक लगे रहे। छोटे-बड़े आंदोलनों में बेबक होकर जेल जाते रहे।

मुलाय सिंह यादव 1967 में संयुक्त शोसलिस्ट पार्टी से इटावा की जसवंत नगर सीट से एमएलए हुए। दो साल बाद पुनरू मध्यावधि चुनाव 1967 में हुआ जिसमें वह हार गए। 1974 में राजनारायण और रामसेवक यादव के साथ लोकदल में चले गए। 1974 में फिर इटावा से जीते।

मुलायम सिंह यादव इमरजेंसी में दो साल जेल में रहे। 1977 में फिर जनता पार्टी से उसी सीट से एमएलए हो गए। जनता पार्टी की सरकार में पहली बार कैबिनेट मंत्री हुए। उन्हें सहकारिता विभाग दिया गया था। 1980 में वह फिर विधानसभा चुनाव हार गए। बावजूद इसके चैधरी चराण सिंह ने उन्हें एमएलसी बना दिया। विधान परिषद में नेता विरोधी दल का पद भी मिला। उसके बाद लोक दल के प्रदेश अध्यक्ष हो गए। 1989 में लोक दल का जनता दल में विलय हो गया। 1990 में यूपी में जनता दल की सरकार बनी और वह पहली बार मुख्यमंत्री बने। इसके बाद वीपी सिंह की सरकार गिराने में उन्होंने चंद्रशेखर की मदद की। परिणाम सभी जानते हैं। वीपी की सरकार गिरी और चंद्रशेखर पीएम हो गए। दो साल चंद्रशेखर की अध्यक्षता वाली समाजवादी जनता पार्टी में रहे। 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन किया।

इसके बाद मुलायम सिंह ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उस साल उन्होंने कांशीराम की अध्यक्षता वाली बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया। 1993 में इस गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री हो गए। कांशीराम द्वारा समर्थन वापस ले लिए जाने के कारण मुलायम सिंह सरकार गिर गई। 1995 में मुलायम सिंह ने फिर यूपी में सरकार बनाई। इस सरकार के बनने से मुलायम सिंह की हैसियत यूपी के सबसे बड़े नेता की हो गई। एक बार तो भाजपा के अप्रत्यक्ष समर्थन से 2004 में पुनरू सत्ता में आए थे।

स्पष्ट बहुमत की सरकार यूपी में मुलायम की सरकार 2012 में बनी, तब उन्होंने अपने बेटे अखिलेश को मुख्यमंत्री बना दिया। मुलायम सिंह, अपने भाई शिवपाल को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे लेकिन उनके चचेरे भाई प्रो. रामगोपाल यादव ने इसका विरोध किया था। उस विरोध के बाद अखिलेश को सीएम बनाया।