हमदर्द बने खुदगर्ज, नहीं चूकाते फर्ज ?
आज भले ही सपा बसपा भाजपा कांग्रेस अथवा नीतीश जी सहित सभी दल ओबीसी ओबीसी चिल्लाते रहे लेकिन एमबीसी की बात करने वाला कोई नहीं है जिस कारण अपनों के ही शिकार बनें अतिपिछड़े सभी दलों का वोटबैंक बनकर रह गए हैं कुल मिलाकर वास्तविकता की बात करें तो यहां खुद को एमबीसी का हमदर्द बताने वाले ही खुदगर्ज बने बैठे हैं जिस कारण वह अब तक अपना फर्ज निभाने में नकारा साबित हुए हैं।
हम सबसे पहले देश की सबसे बड़ी पार्टी और वर्तमान में डबल इंजन की सरकार चला रही भाजपा से कहना चाहते हैं कि आपके प्रधानमंत्री व अन्य साझीदार चुनाव आते ही ओबीसी ओबीसी चिल्लाने में संकोच नहीं करते और हमेशा पिछड़े वर्ग की हितैषी होने का दम भरते हैं लेकिन एक बार भी किसी ने नहीं कहा कि पिछड़े वर्ग की कुछ जातियां तो ताकत के बल पर संविधान के अनुसार मिलने वाला आरक्षण डकारती आ रही हैं जो वंचित जातियों को उनके अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बिंदु सत्ता में हिस्सेदारी का है लेकिन मोदी जी तो अन्य से भी चार कदम आगे निकले जिनके नेतृत्व में देश में रहने वाले 37ः अति पिछड़े सत्ता में हिस्सेदारी से वंचित रहे। दो-दो बार प्रधानमंत्री रहने के बावजूद आपने कभी उनकी तरफ नहीं देखा और खुद को पिछड़ा बताकर क्रीमी लेयर पिछड़ों को अधिकार बांटते रहे। दूसरा नंबर खुद को पिछड़ा बताने वाले सपा मुखिया अखिलेश यादव का आता है वह भी 5 साल मुख्यमंत्री रहे और उनसे पहले स्वर्गीय नेता जी ने उत्तर प्रदेश की एक नहीं चार-चार बार कमान संभाली परंतु अति पिछड़ा जहां था वहीं खड़ा रहा कुल मिलाकर सपाईयों ने भी पिछड़ी जातियों का खूब गुणगान किया लेकिन यह कभी नहीं स्वीकार किया कि हम तो केवल 27 प्रतिशत को लाभ पहुंचा रहे हैं 37ः अतिपिछड़ा खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है और तो और जब भाजपा ने देश भर में एक छत्र राज स्थापित कर लिया और उसे हराने के लिए कांग्रेस सपा, ममता, आरजेडी, आम आदमी पार्टी सहित कई दलों ने मिलकर इंडिया नामक गठबंधन बनाया तब भी अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में पीडीए यानि पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक का राग अलाप दिया लेकिन एक बार कभी यह नहीं कहा कि अति पिछड़ा तो उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक संख्या में निवास करता है इनमें कई ऐसी जातियां हैं जिनमें आज तक विधायक सांसद मंत्री तक नहीं बन सके।
मैं कोई ओबीसी में गिने जाने वाली जाट यादव कुर्मी आदि ताकतवर जातियों की आलोचना नहीं करता लेकिन यह जरूर कहना चाहता हूं कि यह जातियां तो पहले ही सरकार चला चुकी हैं क्या कोई बता सकता है कि पाल प्रजापति, सैनी शाक्य कुशवाहा मौर्य, कश्यप, सेन सविता नंद विश्वकर्मा आदि जातियों में से किसी का कोई मुख्यमंत्री आज तक बनाया गया हो या अन्य कोई महत्वपूर्ण पद से नवाजा गया हो ,मुझे पता है की एक सोची समझी साजिश के तहत सपा बसपा भाजपा कांग्रेस नितिश सहित आदि ने ताकतवर पिछड़ों की नाराजगी से बचने के लिए सर्वाधिक वोट रखने वाली इन अतिपिछड़ी जातियों को सत्ता से दूर रखा। यही हाल देश में सर्वाधिक समय सरकार चलाने वाली कांग्रेस पार्टी का है जिसने गर्त में जाने के बावजूद भी कभी अति पिछड़ों की बात नहीं की और हमेशा ताकतवर जातियों की हमदर्द होने का दिखावा करती रही जो आज भी जारी है राहुल गांधी भले ही वर्तमान सरकार पर आरोप लगाकर 90 जॉइंट सेक्रेटरी में मात्र दो ओबीसी के बता रहे हो लेकिन एक बार भी यह बताता उचित नहीं समझा की अति पिछड़ी जाति का भी कोई है कि नहीं। मैं पूछना चाहता हूं कांग्रेस के सर्वेसर्वा राहुल गांधी से कि आज वह कांग्रेस अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे को देश का प्रधानमंत्री बनाने की बात कर रहे हैं कभी उन्होंने पुराने कांग्रेसियों से पूछा है कि जगजीवन राम जी को क्यों प्रधानमंत्री की कुर्सी से वंचित रखा गया था। आखिर क्यों नहीं 37ः आबादी रखने वाले अति पिछड़े को देश का प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते शायद वह भी अतिपिछड़ों को सत्ता से दूर रखने वाले परिवार के सदस्य हैं जिसमें एक सोची समझी साजिश के तहत अति पिछड़ों को बड़ी कुर्सियों से अलग रखा जाता रहा है। यदि मैं बात बसपा मुखिया मायावती की करूं तो वह तो पहले ही अपनी पार्टी गर्त में ले जा चुकी हैं हालांकि शुरूआती दौर में उन्होंने अतिपिछड़ों को सम्मान देने में कंजूसी नहीं की लेकिन आज अति पिछड़ों की बात करने को तैयार नहीं है वर्तमान समय में यदि उनके मन में अति पिछड़ी जातियों के प्रति जरा भी प्रेम होता तो खुलकर कहती कि हम अति पिछड़ी जातियों को बिना किसी से पार्टी फंड जमा कराए जनसंख्या अनुपात में हिस्सेदारी देने का काम करेंगे, मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि सत्ता में हिस्सेदारी से वंचित रखा जाता रहा अतिपिछड़ा आज फिर उनके साथ खड़ा हो जाता। लेकिन बसपा मुखिया है कि अति पिछड़ों से गठबंधन करने को तैयार नहीं है जबकि 2007 की सरकार भाईचारा कमेटी के माध्यम से अति पिछड़ों के द्वारा ही बनाई गई थी लेकिन उन्होंने कभी अति पिछड़ों की पीठ नहीं थपथपाई, हां इतना जरूर हुआ कि उनको एक-एक करके अपनी पार्टी से ही अलग कर डाला आज वह उस चैराहे पर खड़ी हैं जहां उन्हें कोई पूछने वाला नहीं है यदि हम नीतीश कुमार की बात करें तो उन्होंने भी चार-चार बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद कभी अतिपिछड़ों को जनसंख्या अनुपात में हिस्सेदारी नहीं दी आज वह अतिपिछड़ों के मसीहा बनने का नाटक कर रहे हैं केवल उपरोक्त राजनीतिक दल ही नहीं अपने देश में जिस दल ने भी कमान संभाली उसने हमेशा अति पिछड़ी जातियों के वोट तो लिए साथ भेदभाव करने का काम किया और मजेदार बात तो यह है कि वर्तमान दौर में राजनीतिक हिस्सेदारी डकारने वाले बाहरी लोग तो है ही बड़े भाई ही छोटे भाईयों के दुश्मन बने हुए हैं। मेरी नजर में अतिपिछड़ों को सत्ता की हिस्सेदारी से वंचित रखने में बड़बोले सामाजिक ठेकेदारों का बड़ा योगदान है इनमें भले ही चंदे के सहारे सामाजिक कार्यक्रमों में लाखों रुपए खर्च करने का जज्बा हो लेकिन राजनीतिक रूप से खुद को मजबूत करने को तैयार नहीं है ।
मजेदार बात तो यह है अतिपिछड़े जिस तेजी के साथ धार्मिक और सामाजिक बदलाव की ओर चल पड़े हैं वह अपने परिवार या रिसतेदार को उस रास्ते पर सौ साल तक भी ला पाएंगे कहना मुश्किल है हालांकि दलित अतिपिछड़ों का सामाजिक व धार्मिक बदलाव की ओर जाना समय की मांग हो सकती है लेकिन जिन जातियों का आज तक एक विधायक सांसद नही बना उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी पर काम न कर इस अभियान में जुट जाना न सिर्फ हास्यास्पद है बल्कि धन धरती शिक्षा सम्मान स्वाभिमान से वंचित रखी गई जातियों को गर्त में ले जाने वाला है जिसमें शायद उन्हे100 साल भी सफलता मिलने की उम्मीद नहीं है और संविधान की रखवाली बिना सत्ता के कर पाना किसी के बस की बात नहीं है। हमेशा वंचित वर्ग की बात रखने के जूनून में मैं पीछे हटने वाला नहीं हूं इस लिए इन सामाजिक संगठनों के लिए सद्बुद्धि की प्रार्थना करके अपनी कलम रोकता हूं।
विनेश ठाकुर, सम्पादक
विधान केसरी ,लखनऊ