प्रदूषण का कहर रोकने के लिए सभी राज्यों को आना होगा साथ-स्वास्थ्य मंत्रालय
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने वायु प्रदूषण पर आज 19 नवंबर, सोमवार को सभी राज्यों को पत्र लिखकर निर्देश जारी किए हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने वायु प्रदूषण को लेकर चिंता जाहिर की है. मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि बच्चों, गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों, पहले से मौजूद बीमारियों वाले व्यक्तियों और प्रदूषण के संपर्क में आने वाले श्रमिकों सहित कमजोर आबादी विशेष रूप से जोखिम में है. वायु प्रदूषण को लेकर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश जारी किए गए हैं, जिसमें मौजूदा स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने और कमजोर समूहों और जोखिम वाले व्यवसायों के बीच जागरूकता बढ़ाने की हिदायत दी गई है.
स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य के लिए राज्य स्तरीय कार्य योजनाएं पहले से ही राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनपीसीसीएचएच) के तहत लागू हैं. अब अगला कदम यह होगा कि एनपीसीसीएचएच के तहत जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के लिए जिला और शहर स्तरीय कार्य योजनाएं विकसित की जाएं, जिसमें वायु प्रदूषण के लिए रणनीतियां शामिल हों. इसके अलावा, सभी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों की निगरानी के लिए सेंटिनल अस्पतालों का नेटवर्क बढ़ाना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. मंत्रालय ने सभी राज्यों को इस मामले में काम करने के लिए कहा है.
मंत्रालय की तरफ से वायु प्रदूषण पर जो हेल्थ एडवाइजरी जारी की गई है, उसमें सबसे पहले वायु प्रदूषण क्या होता है और इससे कितना खतरा है इस बात का जिक्र किया गया है. वायु प्रदूषण के कारण होने वाले खतरनाक पॉल्यूटेंट्स जैसे PM 2.5, PM 10, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड के बारे में बताया गया है. इसमें आईसीएमआर की रिपोर्ट का कभी जिक्र किया गया है. साल 2019 में 1.7 मिलियन भारतीयों की मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हुई थी.
भारत में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली अक्षमता-समायोजित जीवन वर्ष (DALYs) 11.5 फीसदी है, जिसमें फेफड़ों की बीमारियां (COPD) 22.7 फीसदी, निचले श्वसन तंत्र के संक्रमण 15.5 फीसदी, फेफड़ों का कैंसर 11.3 फीसदी और अन्य बीमारी भी शामिल हैं. हृदय रोग (इस्केमिक हार्ट डिजीज) के मामले 24.9 प्रतिशत, स्ट्रोक के मामले 11.7 प्रतिशत, मधुमेह (डायबिटीज) के मामले 5.5 प्रतिशत और नवजात विकार 14.5 प्रतिशत मामले वायु प्रदूषण के कारण आ रहे हैं. वायु प्रदूषण के कारण 1.5 फीसदी लोगों को मोतियाबिंद की समस्या भी हुई है.
देश में वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत बाहरी वायु प्रदूषण (एंबिएंट एयर पॉल्यूशन), मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न प्रदूषण, औद्योगिक उत्सर्जन (जीवाश्म ईंधन जलने, प्रक्रिया और फ्यूजिटिव उत्सर्जन), वाहनों का एमिशन, सड़क पर उड़ने वाली धूल, निर्माण और विध्वंस गतिविधियां, प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न प्रदूषण, कूड़ा जलाना (कूड़ा, हॉर्टिकल्चर वेस्ट, फसल अवशेष आदि), खाना पकाने और आतिशबाजी के लिए ठोस ईंधन का उपयोग है. यह आंकड़े दर्शाते हैं कि वायु प्रदूषण भारत में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं का कारण है और इसके लिए तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.
वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा असर बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों पर होता है. स्वास्थ्य मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक वायु प्रदूषण से विशेष रूप से पांच वर्ष से कम आयु के बच्चे और गर्भवती महिलाओं पर खतरनाक असर हो सकता है. पहले के समय में लोगों को श्वसन, हृदय और सेरेब्रोवास्कुलर सिस्टम से जुड़ी बीमारियों से अधिक खतरा होता था.
इसके इलावा निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति, खराब पोषण स्थिति, खराब मकान में रहने, खाना पकाने, हीटिंग और लाइटिंग के लिए अवैध ईंधन का उपयोग करने वाले लोग भी जोखिम में हैं. बाहरी काम करने वाले समूह जैसे यातायात पुलिस, निर्माण श्रमिक, सड़क साफ करने वाले, रिक्शा खींचने वाले, ऑटो-रिक्शा ड्राइवर, सड़क किनारे विक्रेता और अन्य बाहरी वायु प्रदूषित वातावरण में काम करने वाले लोग भी जोखिम में हैं. घरेलू कामकाज करने वाली महिलाएं, खाना पकाने के लिए आग जलाने और धूल के संपर्क में आने वाले लोग भी इस प्रदूषण का सामना कर रहे हैं.
पिछले महीने 19 अक्टूबर को भी स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर को देखते हुए निर्देश जारी किए गए थे. उन्हें निर्देशों का सख्ती से पालन करने और मौजूदा स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने पर जोर दिया गया था, जिसमें सार्वजनिक जागरूकता अभियान को तेज करने, स्वास्थ्य देखभाल कार्यबल की क्षमता और प्रहरी निगरानी प्रणालियों में भागीदारी बढ़ाना, जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य पर सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना, व्यक्तिगत डीजल या पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के अलावा सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना, डीजल-आधारित जनरेटर पर निर्भरता और धूम्रपान पर अंकुश लगाना शामिल था. इसके साथ ही घर में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन का चयन करना, खेल-कूद जैसी आउटडोर गतिविधियां और व्यायाम प्रतिबंधित होना चाहिए.
वायु प्रदूषण से निपटने के लिए राज्यों को निर्देश
वायु गुणवत्ता जानकारी प्राप्त करना
- राज्य स्वास्थ्य अधिकारी शहरों में दैनिक वायु गुणवत्ता डेटा की निगरानी करें, विशेष रूप से एनसीएपी शहरों में.
- सीपीसीबी वेबसाइट या राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जानकारी प्राप्त की जा सकती है.
- समीर ऐप का भी उपयोग जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है.
स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना
- वायु प्रदूषण से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के लिए सेवाओं को मजबूत करना.
- सामुदायिक स्तर पर गतिविधियों के लिए वायु गुणवत्ता डेटा का उपयोग करना.
जन जागरूकता अभियान
- आईईसी सामग्री: पोस्टर, जीआईएफ, ऑडियो-वीडियो स्पॉट, सोशल मीडिया संदेश.
- स्थानीय भाषाओं में अनुवादित आईईसी सामग्री और संदेश.
- सोशल मीडिया पर अभियान चलाना.
जागरूकता अभियान के लिए चैनल
- सोशल मीडिया: ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सएप.
- पोस्टर, वॉल पेंटिंग, स्ट्रीट प्ले.
- रेडियो, टेलीविजन चैनल.
- सार्वजनिक परिवहन वाहन.
स्वास्थ्य सेक्टर में क्षमता निर्माण और प्रदूषण से संबंधित बीमारियों पर निगरानी
- स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कार्य योजना विकसित करना (जिला, शहर स्तर आदि)
- प्रशिक्षण कैलेंडर
- प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित करना और ट्रेनिंग ऑफ ट्रेनर्स (TOT) का आयोजन
- कार्यक्रम अधिकारियों, निगरानी नोडल अधिकारियों, सामुदायिक स्तर पर कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना
निगरानी और मॉनिटरिंग
- राज्य और केंद्र स्तर पर एनपीसीसीएचएच कार्यक्रम अधिकारियों की भूमिका
- सेंटिनल अस्पतालों की स्थापना और विस्तार
- प्रत्येक सेंटिनल अस्पताल से दैनिक वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों की रिपोर्टिंग
स्वास्थ्य सेवा प्रतिक्रिया तंत्र
- स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना
- डॉक्टरों और स्टाफ को प्रदूषण से संबंधित मुद्दों पर प्रशिक्षित करना
- मरीजों की देखभाल सेवाएं
- आपातकालीन सेवाएं
- रेफरल सेवाएं
- एम्बुलेंस सेवाएं
- आउटरीच सेवाएं
- दवाओं की उपलब्धता
- डायग्नोस्टिक लैब सेवाएं
- मेडिकल उपकरण जैसे ऑक्सीजन आपूर्ति, नेबुलाइज़र, वेंटिलेटर
स्वास्थ सचिव की तरफ से कहा गया है कि वायु प्रदूषण हाल के वर्षों में एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य चुनौती बनकर उभरा है. वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) अक्सर खराब से लेकर गंभीर तक के स्तर की रिपोर्ट करता है. खासकर सर्दियों के महीनों के दौरान वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभाव बहुआयामी हैं, जो न केवल गंभीर बीमारियों को बढ़ावा देते हैं, बल्कि श्वसन, हृदय और मस्तिष्क संबंधी प्रणालियों आदि को प्रभावित करने वाली पुरानी स्थितियों को भी बिगाड़ते हैं. इसलिए इस पर सभी को मिलकर काम करने की ज़रूरत है.