बाराबंकीः श्रीमद भागवत कथा के तीसरे दिन राजा परीक्षित के श्राप की सुनाई कथा
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जैदपुर/बाराबंकी। मसौली चैराहे पर चल रही श्रीमद भागवत कथा के तीसरे दिन कथावाचक बाल व्यास शशिकांत महाराज ने राजा परीक्षित के श्राप की कथा को सुनाकर भक्तो को विभोर कर दिया। कथावाचक बाल व्यास शशिकांत महाराज ने कहा एक बार राजा परीक्षित शिकार के लिए वन में गए। वन्य पशुओं के पीछे दौड़ने के कारण वे प्यास से व्याकुल हो गए व जलाशय की खोज में इधर उधर घूमते घूमते वे शमीक ऋषि के आश्रम में पहुंच गए। वहां पर शमीक ऋषि नेत्र बंद किए हुए व शांतभाव से एकासन पर बैठे हुये ब्रह्माध्यान में लीन थे। राजा परीक्षित ने उनसे जल मांगा कितु ध्यानमग्न होने के कारण शमीक ऋषि ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। सिर पर स्वर्ण मुकुट पर निवास करते हुए कलियुग के प्रभाव से राजा परीक्षित को प्रतीत हुआ कि यह ऋषि ध्यानस्थ होने का ढोंग कर के मेरा अपमान कर रहा है। उन्हें ऋषि पर बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपने अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से पास ही पड़े हुये एक मृत सर्प को अपने धनुष की नोक से उठा कर ऋषि के गले में डाल दिया और अपने नगर वापिस लौट आए।
कथावाचक ने कहा कि शमीक ऋषि तो ध्यान में लीन थे उन्हें ज्ञात ही नहीं हो पाया कि उनके साथ राजा ने क्या किया है, कितु उनके पुत्र ऋंगी ऋषि को जब इस बात का पता चला तो उन्हें राजा परीक्षित पर बहुत क्रोध आया। ऋंगी ऋषि ने सोचा कि यदि यह राजा जीवित रहेगा तो इसी प्रकार ब्राह्मणों का अपमान करता रहेगा। इस प्रकार विचार करके उस ऋषिकुमार ने कमंडल से अपनी अंजुल में जल ले कर तथा उसे मंत्रों से अभिमंत्रित करके राजा परीक्षित को यह श्राप दे दिया कि जा तुझे आज से सातवें दिन तक्षक सर्प डसेगा। कुछ समय बाद शमीक ऋषि के समाधि टूटने पर उनके पुत्र ऋंगी ऋषि ने उन्हें राजा परीक्षित के कुकृत्य और अपने श्राप के विषय में बताया। श्राप के बारे में सुन कर शमीक ऋषि को बहुत दुरूख हुआ और उन्होंने कहा अरे मूर्ख! तूने घोर पाप कर डाला। जरा सी गलती के लिए तूने उस भगवत्भक्त राजा को घोर श्राप दे डाला। मेरे गले में मृत सर्प डालने के इस कृत्य को राजा ने जान बूझ कर नहीं किया है। उस समय वह कलियुग के प्रभाव में था।
उसके राज्य में प्रजा सुखी है और हम लोग निर्भीकतापूर्वक जप, तप, यज्ञादि करते रहते हैं। अब राजा के न रहने पर प्रजा में विद्रोह, वर्णसंकरतादि फैल जाएगी और अधर्म का साम्राज्य हो जाएगा। यह राजा श्राप देने योग्य नहीं था पर तूने उसे श्राप देकर घोर अपराध किया है। कहीं ऐसा न हो कि वह राजा स्वयं तुझे श्राप दे दे, किंतु मैं जानता हूं कि वे परम ज्ञानी है और ऐसा कदापि नहीं करेंगे। कथावाचक बाल व्यास शशिकांत महाराज ने कहा ऋषि शमीक को अपने पुत्र के इस अपराध के कारण अत्यंत पश्चाताप होने लगा।
राज गृह में पहुंच कर जब राजा परीक्षित ने अपना मुकुट उतारा तो कलियुग का प्रभाव समाप्त हो गया और ज्ञान की पुनरू उत्पत्ति हुई। वे सोचने लगे कि मैंने घोर पाप कर डाला है। निरपराध ब्राह्मण के कंठ में मरे हुये सर्प को डाल कर मैंने बहुत बड़ा कुकृत्य किया है। इस प्रकार वे पश्चाताप कर रहे थे कि ऋषि शमीक का भेजा हुआ एक शिष्य ने आकर उन्हें बताया कि ऋषिकुमार ने आपको श्राप दिया है कि आज से सातवें दिन तक्षक सर्प आपको डस लेगा। राजा परीक्षित ने शिष्य को ्रसन्नतापूर्वक आसन दिया और बोले ऋषिकुमार ने श्राप देकर मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है।
इस मौके पर श्रीमती मीरा देवी, रामकिशोर यज्ञसैनी, राजकुमार, दिलीप कुमार, पूर्व प्रधान धर्मेंद्र कुमार, संजय कुमार, अजय कुमार महेंद्र कुमार, गुडू यगसैनी, शुभम यज्ञसैनी, कृष्ण कुमार उतकर्ष यज्ञसैनी, आयुष यज्ञसैनी आदि भक्तगण मौजूद रहे।