प्रयागराजः आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित ज्योतिष्पीठ का स्वामी ब्रह्मानंद ने किया पुनरूद्धार-शंकराचार्य वासुदेवानंद
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प्रयागराज। ब्रम्ह निवास भगवान आदिशंकराचार्य मंदिर में आयोजित नौ दिवसीय आराधना महोत्सव में श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज ने श्ज्ज्योतिष्पीठोद्धारक जगद्गुरूशंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वत जी के पाटोत्सव कार्यक्रम में पीठोद्धारक शंकराचार्य जी की पूजा आरती किया। पूज्य शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज ने बताया कि संवत 2631 में दक्षिण भारत में केरल देश के अन्तर्गत कालड़ी ग्राम में वैदिक निम्बूदरी ब्राह्मण कुल में आचार्य शंकर का जन्म हुआ। इनके पिता का नाम शिवगुरू और माता का नाम विशिष्टा सरस्वती था। श्री शंकराचार्य भगवान शंकर के अवतार थे। सनातन वैदिक धर्म की रक्षा व प्रचार करते हुए भगवान आदिशंकराचार्य ने ज्योतिः, शारदा, श्रृंगेरी और गोवर्धन नाम के चार पीठों की स्थापना किया। इन चारों पीठों का एक-एक आचार्य-प्रमुख बना दिया।
श्रीमज्ज्योतिष्ठाधीश्वर पूज्य जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी ने बताया कि संवत 1833 से संवत 1998 तक (165 वर्ष तक) उत्तराम्नाय का धर्मपीठ-ज्योतिष्पीठ आचार्य विहीन दशा में राजनैतिक व दैवी प्रकोप आदि कारणों से उच्छिन्न पड़ा रहा। बाद में सन् 1908 में श्रीनगर, काश्मीर, मेवाड़, नेपाल, टिहरी के राजाओं एवं प्रमुख संत महात्माओं विद्वानों ने 1910 ई0 में गढ़वाल के कलेक्टर के सहयोग से मठ के निर्माण के लिए भूमि खरीद कर एक विद्वान चरित्रवान, विवेकशील, ज्ञान वृहद, वेदशास्त्रों को मानने वाले वर्णाश्रम मर्यादा का पालन करने वाले सनातन धर्म पर अटल विश्वास रखने वाले, अद्वैत सिद्धांत के पोषक और इष्ट पर निष्ठा रखने वाले संत को खोजकर जगद्गुरू शंकराचार्य पीठ पर पीठासीन किया। यही संत
श्रीमज्ज्योतिष्पीठोद्धारक जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के नाम पद पर विराजमान होकर ज्योतिष्पीठ के उद्धार, विकास व सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार करने के लिए आजीवन लगे रहे। इन्हीं की परम्परा में इनके ही वसीयत के आधार पर श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य के नाम पर पूज्यस्वामी शान्तानंद सरस्वती, उनके बाद स्वामी विष्णुदेवानंद सरस्वती और उनके बाद मैं स्वयं (पूज्य शंकराचार्य) ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ज्योतिष्पीठाधीश्वर नाम पद पर पीठासीन हुये। मैं आज भी हूँ और भविष्य में भी सनातन सेवा करता रहूँगा।
पूज्य व्यास ओम नारायण तिवारी ने संगीत एवं भजन के साथ श्रीमद्भागवत कथा का मनमोहक रसास्वादन भक्तों को कराया। कार्यक्रम के अन्त में आरती हुई। प्रवक्ता ज्योतिष्पीठ ओंकारनाथ त्रिपाठी ने बताया कि 15 तारीख तक प्रतिदिन प्रातः 7ः00 बजे से 12ः00 बजे तक श्रीरामचरितमानस का नवान्हपरायण, अपरान्ह 2ः00 बजे से 5ः00 बजे तक श्रीमद्भागवत कथा, सायं 7ः00 बजे से 9ः00 बजे तक भगवान मैदानेश्वर बाबा का भव्य दिव्य रूद्राभिषेक होगा।
आराधना महोत्व में दण्डी संन्यासी स्वामी विनोदानंद जी महाराज, दण्डी स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती, दण्डी संन्यासी ब्रह्मपुरी जी, ज्योतिष्पीठ संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्रधानाचार्य पं0 शिवार्चन उपाध्याय, आचार्य पं0 अभिषेक मिश्रा, आचार्य पं0 विपिनदेवानंदजी, आचार्य पं0 मनीष मिश्रा, श्री सीताराम शर्मा, अनुराग जी, दीप कुमार पाण्डेय जी एवं महेन्द्र दुबे आदि विशेष रूप से सम्मिलित रहे।