पीलीभीतः समाज में अपने फायदे के लिए महिलाओं द्वारा झूठे मुकदमों में फंसा कर पुरुषों का हो रहा शोषण

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विधान केसरी समाचार

पीलीभीत। आज समाज में पुरुष की स्थिति यह हो चुकी है यदि कोई महिला उस पर मौखिक आरोप लगा दे तो समाज उसे हीन दृष्टि से देखने लग जाता है फिर कहीं लिखित शिकायत कर दी गई तब तो वह पुरुष सीधे दोषी साबित कर दिया जाता है आरोप और आरोपी नाम की चीज बीच से समाप्त हो चुकी है द्य ऐसा ही एक घटना पीलीभीत के बाल विकास परियोजना अधिकारी नीरज कुमार के साथ घटित हो गई द्यदरअसल इसी 1 दिसंबर को बरेली के इज्जत नगर थाने में एक प्रथम सूचना प्राथमिकी दर्ज हुई जिसमें एक पीड़िता ने बाल विकास परियोजना अधिकारी पूरनपुर नीरज कुमार पर गंभीर आरोप लगाते हुए गंभीर धाराओं में मामला दर्ज करा दिया, यदि कोई मामला है तो दर्ज होना ठीक है होना चाहिए पुलिस ने भी गंभीरता से मामले को दर्ज कर जांच प्रारंभ कर दी है, मगर दर्ज मामले की हकीकत जो अभी तक सामने नहीं आई है जिसे पुलिस अपनी जांच में सामने लाएगी, उस मामले पर आरोप लगाने वाले पक्ष ने इस कदर बाआवाज-ए- बुलंद अपने आरोपों को बोल दे दिया है कि मामला समाज के सशक्त ठेकेदारों तक पहुंच गया और सशक्त ठेकेदारों द्वारा अपनी जुबानी आरोपी को अभी से दोषी मान लिया है द्य और ऐसा सिर्फ इसलिए कि आरोप महिला ने पुरुष पर लगाए हैं यही आरोप यदि पुरुष ने महिला पर लगाए होते तो शायद समाज के ठेकेदार आज अपनी वाणी और कलम दोनों को विराम दिए बैठे होते हैं द्यबहरहाल सीडीपीओ के मामले में पीड़िता से लेकर समाज के ठेकेदारों ने जो आरोप लगाए हैं उनमें सीडीपीओ पर गंभीर धाराओं में मामला दर्ज होना बताया गया है बिल्कुल सही बात है मामला दर्ज हुआ है लेकिन क्या साक्ष्य और सबूत की पड़ताल हुई है क्या दर्ज मामला वास्तविकता में सही है, क्या यह उचित नहीं है कि मामले में कितनी वास्तविकता है यह परखा जाए क्या यह उचित नहीं है की जांच के बाद इस विषय पर चर्चा की जाए द्य दूसरा यह आरोप की सीडीपीओ अपनी जान बचाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में पड़े हुए हैं, जान बचाने का हक सबको है मगर क्या सीडीपीओ की लोकेशन ट्रेस की गई क्या वास्तव में वह इलाहाबाद में है या अपने सुखद नव वैवाहिक जीवन का आनंद लेने अपने नव विवाहित उत्तरदायित्व को पूर्ण करने गए हुए हैं, क्या जरूरी नहीं था कि इसकी जांच पड़ताल की जाती।

जबकि संविधान के अनुसार हर आरोपी को अपना पक्ष अपनी बात रखने का अधिकार है जिसके तहत आरोपों के घेरे में आए सीडीपीओ ने भी अपनी बात लोगों को बताई लोगों के सामने अपनी बात रखी कि ऐसा कुछ नहीं है वह पीड़िता से परिचित हैं और वह उनके लिए बहन समान ही हैं न जाने किस मनोदशा में आकर कमोवेश न जाने किस क्षुब्दता मे पीड़िता ने मामला दर्ज कराया है उनकी क्या मंशा है यह जानने का प्रयास किया जाएगा परंतु वह दोषी नहीं है, सही भी है जब तक जांच पूरी नहीं होती है दोषी कैसे माना जा सकता है द्य हां आरोप लगे हैं आरोपी माना जा सकता है मगर दोष सिद्ध होने से पहले किसी पर लगे इन गंभीर आरोप का ढिंढोरा पीटना क्या समाज में उसकी छवि को पैरों तले कुचलना नहीं है एक बारगी विचार कीजिए कि सारे आरोप यदि मिथ्या निकले तो क्या समाज से मिली इस प्रताड़ना को कोई निर्दोष अपने जीवन काल में भूला पाएगा।