केस डिसमिस्ड, आप संसद जाएं-सुप्रीम कोर्ट
दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा विरोधी कानूनों के दुरुपयोग के खिलाफ दाखिल एक याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. याचिकाकर्ता ने इन कानूनों को पुरुषों के प्रति भेदभाव भरा बताया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह यह बात संसद के सामने रखे.
रूपशी सिंह नाम की याचिकाकर्ता की याचिका में 1961 के दहेज निषेध कानून और 2005 के घरेलू हिंसा विरोधी कानूनों को महिला केंद्रित बताया गया था. उनका कहना था कि महिला सशक्तिकरण के नाम पर बने यह कानून पुरुषों के प्रति भेदभाव भरे हैं. इनकी आड़ लेकर पुरुषों के खिलाफ झूठी शिकायतें दर्ज हो रही हैं.
याचिकाकर्ता ने डाउरी प्रोहिबिशन एक्ट (दहेज निषेध कानून) की धाराओं 2, 3 और 4 को असंवैधानिक कहा था. इन धाराओं में दहेज की परिभाषा दी गई है और दहेज की मांग और उसके लेन-देन को दंडनीय अपराध बनाया गया है. सोमवार (3 फरवरी, 2025) को यह मामला जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच में लगा.
याचिकाकर्ता ने खुद को जनहित में काम करने वाला नागरिक बताते हुए कहा कि इन कानूनों को खत्म करने की जरूरत है, लेकिन जजों ने मामला सुनने से मना कर दिया. जस्टिस गवई ने कहा, ‘आपकी याचिका खारिज की जा रही है. आप यह बातें संसद के सामने रखिए.” कोर्ट का इशारा इस तरफ था कि कानून बनाना या उसमें बदलाव करना संसद का काम है. किसी कानून के दुरुपयोग का आरोप कोर्ट के दखल का आधार नहीं हो सकता.